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________________ 382 :: मूकमाटी-मीमांसा ने जातिगत भेदभाव सम्बन्धी तत्त्वों को निरुत्साहित करते हुए कहा है कि जो उच्च कर्म करता है, वही उच्च त अर्थात् सही आदमी है । उन्होंने आचरण को ही प्रमुख माना है और कहा है : "गात की हो या जात की, /एक ही बात है - / हममें और माटी में समता - सदृशता है / ... वर्ण का आशय / न रंग से है / न ही अंग से वरन्/ चाल-चरण, ढंग से है।” (पृ. ४६-४७) स्वतन्त्रता की भावना : जहाँ परतन्त्रता बन्धन है, दुःख है, अँधेरा है वहाँ परतन्त्र व्यक्ति दासता के घेरे में रहकर स्वयं अविकसित रहता है, फिर वह समाज / राष्ट्र के विकास में क्यों योगदान देगा ? वहीं, स्वतन्त्रता सुख है, प्रकाश की किरण है, विकास की सम्भावना है, अस्तु । आचार्य विद्यासागरजी ने 'स्वतन्त्रता' की भावना को राष्ट्रोद्धार की सीढ़ी माना है और कहा है : "यहाँ / बन्धन रुचता किसे ? / मुझे भी प्रिय है स्वतन्त्रता/ तभी "तो" किसी के भी बन्धन में / बँधना नहीं चाहता मैं, / न ही किसी को बाँधना चाहता हूँ।” (पृ. ४४२) आपसी प्रेम और सद्भाव : अलगाववादी प्रवृत्तियों के कारण ही राष्ट्र का क्षितिज स्तरहीन हुआ है, बिखरने के कगार पर आया है। अपहरण, हत्या, व्यभिचार जैसे घिनौने कृत्य अलगाववाद की ही घृणित प्रवृत्ति से उपजे हैं, जो राष्ट्रीय एकता को छितर-बितर करते हैं । आचार्यश्री परस्पर लगाव की भावना को प्रोत्साहन देते हुए कहते हैं : 'अलगाव से लगाव की ओर / एकीकरण का आविर्भाव और/ फूल रही है माटी । " (पृ. ८९) 66 राष्ट्र-प्रेम की भावना : जब तक मनुष्य अपनी धरती, राष्ट्र, संस्कृति से प्रेम, भक्ति की भावना नहीं रखेगा, तब तक देश खुशहाल और उन्नतिमय नहीं हो सकेगा। राष्ट्र और राजा के प्रति सम्मान की भावना, राजा द्वारा प्रजा के साथ पुत्रवत् कामना ही राष्ट्रीय अस्मिता को बरकरार रख सकती है। इसी तरह से धरती के प्रति अनुराग की ओर आपने संकेत किया है । इस सम्बन्ध में आचार्यश्री कहते हैं : "धरती की प्रतिष्ठा बनी रहे, और / हम सबकी धरती में निष्ठा घनी रहे, बस ।” (पृ. २६२ ) शिक्षा और भाषा की दृष्टि से एकता में विकास : शिक्षाविहीन नर पशुतुल्य है। शिक्षा के ही साए में मानव की मनोवृत्तियों का विकास होता है । उसे आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है । शिक्षा की अवधारणा का अर्थ अज्ञान रूपी अँधेरे में प्रकाश लाना है। अच्छी शिक्षा आत्मनिर्भरता, चारित्रता, देशप्रेम और मोक्ष प्राप्ति आदि का कारण है । आचार्यश्री कहते हैं जो शिक्षा के अर्थ को नहीं जानते हैं, वे दु:खी रहते हैं । अज्ञानी राष्ट्र के विकास में बाधक हैं । अनुशासन, ब्रह्मचर्य, पूर्ण सेवा, त्याग, शाकाहार जैसे उदात्त गुणों से भरपूर 'गुरुकुली शिक्षा' को प्राथमिकता देते हुए आचार्यश्री ने शिक्षार्थी को "ज्ञानी बनो सहज पाकर उच्चशिक्षा" जैसे वाक्य प्रसारित किए हैं। इसी प्रकार भाषागत उदारता का परिचय आपके अन्य काव्यों में भी है । किसी राष्ट्र के स्वरूप को शाश्वत बनाए रखने के लिए एक सम्पर्क
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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