________________
380 :: मूकमाटी-मीमांसा
सबको अधीन रखने की/अदम्य आकांक्षा
सर्व-भक्षिणी वृत्ति"।" (पृ. २२४-२२५) इस विखण्डन की स्थिति को रोकने के लिए मानव-मूल्यों के रक्षार्थ आचार्यश्री ने एक सार्थक सन्देश दिया है :
“अपना ही न अंकन हो/पर का भी मूल्यांकन हो, पर, इस बात पर भी ध्यान रहे/पर की कभी न वांछन हो
पर पर कभी न लांछन हो!" (पृ. १४९) और इस प्रकार मनुष्य के 'सदय' (पृ. १४९) होने की भावना ही राष्ट्रीय एकता के स्वरूप को सुरक्षित रख सकेगी।
साम्प्रदायिकता की भावना : साम्प्रदायिकता की भावना देश के आन्तरिक और बाह्य स्वरूप को खण्डित करती है। इस भावना के वशीभूत हो व्यक्ति अपने को दूसरों से श्रेष्ठ ठहराने का प्रयास करता है, जिससे जातीय संघर्ष पैदा होता है । तब धर्म के विकृत पक्ष के आ जाने से धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता है जो लोगों पर अमानवीय और हिंसक कार्य करता है (पृ.७३)। हिंसा, दंगा-फ़साद, तनाव और विनाश साम्प्रदायिकता के कारण ही होते हैं, जिससे आर्थिक हानि के साथ ही साथ राष्ट्रीय अस्मिता भी खतरे में पड़ती है । आचार्य विद्यासागरजी ने इस साम्प्रदायिकता से निजात पाने के लिए मानव को आत्मधर्म पालने की शिक्षा दी है। उन्होंने सभी के उद्धार और आत्मा में ही परमात्मा का निवास है, बताकर धर्म के वितण्डावाद को रोकने का प्रयास किया है।
आपने साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए शरीर, वाणी, मन को समता से सुधारने के सन्देश को मुखरित किया है, जो राष्ट्रीय एकता का सुन्दर कवच है । वे कहते हैं कि जो अपने को बड़ा और श्रेष्ठ कहता है वह धर्म के वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचानता । आचार्यश्री के अनुसार सच्चा धर्म वही है, जिसमें हिंसा नहीं है।
सामाजिक समानता की मानवता : सृष्टि की सर्वोत्तम इकाई मनुष्य है । मनुष्य के बगैर कुछ भी सार्थक नहीं। मनुष्य ने दम्भ और अज्ञान के वशीभूत होकर परस्पर अपने ही बीच अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, ऊँच-नीच की विभाजक रेखा खींच ली है, जिससे सामाजिक स्वरूप गड़बड़ा गया है और राष्ट्र विखण्डन की स्थिति में और नीचे चला गया है । आचार्यश्री ने इस विभाजक रेखा को पाटने के लिए 'मूकमाटी' में स्वर दिए हैं :
"परिवार की शरण में जाना ही/पतवार को पाना है
और/अपार का पार पाना है।" (पृ. ४७२) आर्थिक असमानता समाप्त करने के लिए उन्होंने 'धन-संग्रह' की वृत्ति पर विरोध जताया है और समुचित वितरण व्यवस्था की ओर संकेत किया है :
"अब धन-संग्रह नहीं,/जन-संग्रह करो!/और/लोभ के वशीभूत हो
अंधाधुन्ध संकलित का/समुचित वितरण करो।" (पृ. ४६७) राजनैतिक एकता और परस्पर सहयोग का भाव : आज के भीड़तन्त्र में अराजकता का प्रमुख कारण राजनैतिक विसंगतियाँ हैं, जिसमें दलितों एवं अल्पसंख्यकों के प्रति पूरी सहानुभूति नहीं है। सिर्फ वोट बैंक के लिए 'आरक्षण' जैसी सुविधा है । वह भी अयोग्यता का वरण और योग्यता का हरण करने वाली है :
“प्राय: बहुमत का परिणाम/यही तो होता है,