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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 375 इसी प्रकार नीर-क्षीर के अन्तर को स्पष्ट करते हुए लिखा है : ___ "नीर का क्षीर बनना ही/वर्ण-लाभ है,/वरदान है ।/और क्षीर का फट जाना ही/वर्ण-संकर है/अभिशाप है।" (पृ. ४९) गदहा शब्द की भी नई व्यंजना की है : “गद का अर्थ है रोग/हा का अर्थ है हारक ।" (पृ. ४०) अपने नाम के अनुरूप सबके रोगों का हरण करने की कामना करता है गदहा, जबकि लोक में व्यंजित अर्थ है 'अज्ञानी और मूर्ख । कवि ने 'मानवता' शब्द को भी नया बोध प्रदान किया है- 'मानवत्ता (अहंकार) से घिरकर मनुष्य मानवता से गिर जाता है' (पृ.११४)। 'मूकमाटी' में कवि ने गणित विद्या का चमत्कार दिखाकर ९ के अंक के महत्त्व का प्रतिपादन अध्यात्म के धरातल पर किया है-जीव दर्शन की सूक्ष्म व्याख्या : " ९९ वह/विघन-माया छलना है,/क्षय-स्वभाव वाली है/और अनात्म-तत्त्व की उद्योतिनी है;/और ९ की संख्या यह सघन छाया है/पलना है, जीवन जिसमें पलता है/अक्षय-स्वभाव वाली है ...संसार ९९ का चक्कर है/...भविक मुमुक्षुओं की दृष्टि में ९९ हेय हो और/ध्येय हो ९/नव-जीवन का स्रोत !" (पृ. १६७) इसी प्रकार ६३ की संख्या के अंकों की स्थिति से मानव-मन की चित्तवृत्ति की व्याख्या की है : "छह के मुख को/तीन देख रहा है और तीन को सम्मुख दिख रहा छह !/एक-दूसरे के सुख-दु:ख में परस्पर भाग लेना/सज्जनता की पहचान है,/...जब आदर्श पुरुषों का विस्मरण होता है/तब/६३ का विलोम परिणमन होता है यानी/३६ का आगमन होता है/...विचारों की विकृति ही आचारों की प्रकृति को/उलटी करवट दिलाती है।” (पृ. १६८) इस प्रकार कवि की काव्य प्रतिभा का प्रतिफलन ग्रन्थ के हर पृष्ठ पर हुआ है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत ग्रन्थ भाव एवं कला दोनों दृष्टियों से अनुपम पाण्डित्य, प्रतिभा, बुद्धि, विलास और मन मन्थन के द्वारा शुद्ध आत्मतत्त्व रूपी अमृत को प्राप्त करने में सहायक बना है। पृष्ठ ४७ दुग्धका विकास होता है.... अंतिम कुछ करता। TANAM
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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