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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 373 उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, उदाहरण, पुनरुक्ति, विभावना, मानवीकरण, अन्योक्ति आदि अनेक अलंकारों की सुन्दर छटा भाषा के रूप को सौन्दर्य प्रदान करती है। वास्तविकता तो यह है कि सम्पूर्ण काव्य रूपक और अन्योक्ति की प्रतीकात्मक शैली में लिखा गया है । पानी और मछली, आग और लकड़ी, कुआँ और रस्सी, मिट्टी और कुम्भकार के अनेक रूपक काव्य के अध्यात्मपरक अर्थ को व्यंजित करते हैं। कम्भ और अवे का रूपकजनित अर्थ है कि ये संसार जीवन के लिए एक संघर्ष-समर है जिसकी अग्नि में तपे बिना मानव अपने संकल्पों में दृढ़ नहीं हो सकता। शान्त रस के स्थायित्व की व्यंजना के द्वारा रसास्वाद की लोकोत्तरता को ईश्वरीय आनन्द के समकक्ष मानकर मुनिश्री विद्यासागर ने शान्त रस को शृंगार से भी ऊँचा स्थान दिया है, क्योंकि शृंगार के उभय पक्ष (संयोग और वियोग) मन को अशान्त करते हैं जबकि शान्त रस मन में आनन्द की अनुभूति को शाश्वत बनाने में समर्थ है । जीवन और मृत्यु से ऊपर उठकर ही जीव मुक्त होता है । आचार्यश्री ने उस प्रेम को महत्त्व दिया है जो देशकाल की सीमा से मुक्त सतत प्रवहमान रहता है और मूलत: अहिंसा का पर्यायवाची है। 'मूकमाटी' में प्रेम के व्यापकत्व के आधार पर हृदय परिवर्तन की प्रक्रिया को जीवन्त किया है। - प्रेम और सौन्दर्यानुभूति को प्रकृति के माध्यम से व्यक्त किया है': मानवीकरण : ० "प्राची के अधरों पर/मन्द मधुरिम मुस्कान है।" (पृ. १) 0 "लज्जा के घूघट में/डूबती-सी कुमुदिनी प्रभाकर के कर-छुवन से/बचना चाहती है वह।" (पृ. २) ० "तट स्वयं अपने करों में/गुलाब का हार लेकर स्वागत में खड़ा हुआ है ।" (पृ. ४७९) उपमा: “खसखस के दाने-सा/बहुत छोटा होता है/बड़ का बीज वह ।" (पृ. ७) "दृढ़-तटों से संयत,/सरकन-शीला सरिता-सी।" (पृ. २२) ___ "जल में तैरती-सी/संवेदन करती है लेखनी।" (पृ. २४) । ० "निशा के आँचल में से झाँकता/चकित चोर-सा!" (पृ. ९५) "बोध की जाया-सी।" (पृ. ११९) "कूप-मण्डूक-सी"/स्थिति है मेरी।" (पृ. ६७) विरोधाभास: ० 0 पुनरुक्ति : ० "जल में जनम लेकर भी/जलती रही यह मछली।" (पृ. ८५) "फूलों को छूते नहीं भगवान्/शूल-धारी होकर भी। काम को जलाया है प्रभु ने ।" (पृ. १०३) "उजली-उजली जल की धारा/बादलों से झरती है धरा-धूल में आ धूमिल हो/दल-दल में बदल जाती है।" (पृ. ८) "बिना अर्थ/शिल्पी को यह/अर्थवान् बना देता है ।" (पृ. २७) "सागर में जा गिरती/लवणाकर कहलाती है। ...विषधर मुख में जा/विष-हाला में ढलती है।" (पृ. ८) विभावना : तद्गुण : ० ०
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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