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किया गया है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि 'मूकमाटी' महाकाव्य की भाषा अत्यन्त प्रौढ़ है । स्वाभाविक होते हुए भी अलंकृत है, पर अलंकार भाराक्रान्त नहीं । भाषा में वैविध्य है, इस कारण पाठक को एकरसता का आभास नहीं होता । बोधगम्य होने के कारण प्रेषणीयता के गुण से सम्पन्न है । 'मूकमाटी' महाकाव्य अपने अभिनव कथ्य के साथसाथ अभिनव भाषा के लिए भी साहित्य जगत् में समादृत होगा, ऐसा विश्वास है ।
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मूकमाटी-मीमांसा :: 367
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३९६-३९७
पृष्ठ केला शब्दस्वयं कह रहा कि
एक ही मत है, बस -