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________________ 366 :: मूकमाटी-मीमांसा विशेषता यह है कि ये शब्द हिन्दी, संस्कृत के शब्दों के साथ रच-बस गए हैं, वे पैबंद से नहीं लगते । आत्मीयता की स्वाभाविक अभिव्यक्ति के लिए देशज सम्बोधन भी स्वीकृत हैं : “सुन री रस्सी!" (पृ. ६३), "ओरी रस्सी !" (पृ. ६२) "लोंदा'' (पृ. ४००)- जैसे देशज शब्दों की उपस्थिति भी देखी जा सकती है । कुछ शब्दों और मुहावरों का साभिप्राय प्रयोग तो चमत्कृत करता है, देखते ही बनता है और स्वाभाविकता भी अपनी चरम सीमा पर है : "आइए स्वामिन्!/भोजनालय में प्रवेश कीजिए और/बिना पीठ दिखाये/आगे-आगे होता है पूरा परिवार ।" (पृ. ३२३-३२४) “पीठ दिखाना" मुहावरा है। इसका प्रयोग अधिकतर युद्ध भूमि में शत्रु से डरकर भागने के सन्दर्भ में होता है, पर कवि ने इसका प्रयोग भारतीय संस्कृति की विशेषता के रूप में किया है । हमारी संस्कृति में अतिथि को देवता माना गया है । देवता को पीठ नहीं दिखाई जाती। यहाँ पीठ न दिखाना अतिथि को सम्मान देना है। इसीलिए “बिना पीठ दिखाए" पूरा परिवार आगे-आगे होता है। कहीं-कहीं संस्कृत भाषा के वाक्य अखण्ड और कहीं-कहीं खण्डित रूप में मिलते हैं, यथा : 0 “भो स्वामिन् !/नमोस्तु ! नमोस्तु ! नमोस्तु ! ___अत्र ! अत्र ! अत्र !/तिष्ठ ! तिष्ठ ! तिष्ठ !" (पृ. ३२२) ० "अलं विस्तरेण।" (पृ. ४९) ० "परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।" (पृ. ४१) कहीं-कहीं पदावली की पंक्तियों पर संस्कृत भाषा की छाया प्रतीत होती है, यथा : “दृढ़ा ध्रुवा संयमा आलिंगिता” (पृ. २४२) सम्बोधन कारक में सविभक्तिक प्रयोग भी मिल जाते हैं, यथा : “प्रभो" ! (पृ. ४०), "चारु-शीले'' (पृ. ३१)। संस्कृत के कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग हुआ है जिनका प्रयोग दैनिक बोलचाल में भी किया जाता है : “आवरण' (पृ. ४६२), "मुदित" (पृ. २२१), "साधु" (पृ. २३७) । शब्द एवं अर्थ से सम्बन्धित भाषा में तीन विशेषताएँ होती हैं, जिन्हें गुण कहते हैं। प्रसाद, ओज और माधुर्यतीन गुण हैं। 'मूकमाटी' महाकाव्य में प्रसाद गुण का विशेष ध्यान रखा गया है । जटिल एवं सूक्ष्म विषयों को भी सरल भाषा में अभिव्यक्त किया गया है । ओज गुण मानव स्वभाव की पुरुष वृत्तियों से सम्बन्धित है । यथास्थान भाषा के इस गुण का भी उपयोग किया गया है : "इन्द्र ने अमोघ अस्त्र चलाया/तो"तुम/रामबाण से काम लो ! पीछे हटने का मत नाम लो/ईंट का जवाब पत्थर से दो! विलम्ब नहीं, अविलम्ब/ओला-वृष्टि करो"उपलवर्षा ।" (पृ. २४८) ___ माधुर्य गुण का सम्बन्ध मानव की कोमल वृत्तियों से है। 'मूकमाटी' की भाषा में माधुर्य गुण की भी कमी नहीं "भानु की निद्रा टूट तो गई है/परन्तु अभी वह/लेटा है माँ की मार्दव-गोद में,/मुख पर अंचल लेकर,/करवटें ले रहा है ।" (पृ. १) काव्य की लक्षणा और व्यंजना शक्ति के माध्यम से आज की ज्वलन्त समस्या आतंकवाद का समाधान प्रस्तुत
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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