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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 365 " "वसुधैव कुटुम्बकम्"/इसका आधुनिकीकरण हुआ है वसु यानी धन-द्रव्य/धा यानी धारण करना/आज धन ही कुटुम्ब बन गया है/धन ही मुकुट बन गया है जीवन का ।"(पृ. ८२) कवि ने शब्द के अर्थ को नई धार देते हुए आज के मानव की धन के प्रति आसक्ति की सुन्दर अभिव्यक्ति की है। सम्पूर्ण महाकाव्य से कम से कम ऐसे पचास उदाहरण दिए जा सकते हैं जिनमें कवि की गहन शब्द साधना और अर्थान्वेषिणी दृष्टि को देखा जा सकता है। ____ आधुनिक महाकाव्यों में मुहावरों का प्रायः अभाव मिलता है । मुहावरों के प्रयोग से भाषा में संयम आ जाता है। समीक्ष्य महाकाव्य में लोकजीवन के रचे-पचे मुहावरों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है । कवि ने मुहावरों की लाक्षणिक शक्ति का साधिकार लाभ उठाया है : - "फूली नहीं समाती,/...अपलक ताक रही है।" (पृ. २५); 0 “पानी-पानी हो जा"!"(पृ. ५३) D "फूट-फूट कर रोती है।" (पृ. ८०) - "नाच नाचती रहती हैं।" (पृ. १०१) 0 "जब आँखें आती हैं.../...जब आँखें जाती हैं... ...जब आँखें लगती हैं...।" (पृ. ३५९-३६०) भाषा का एक अन्य गुण है-संक्षिप्ति । संक्षिप्ति से तात्पर्य है-कलात्मक मितव्ययता । इससे भाषा में गति, शक्ति तथा सुन्दरता आती है। इसके लिए लोकोक्तियों तथा कहावतों का प्रयोग किया जाता है। समीक्ष्य महाकाव्य में स्थान-स्थान पर लोकोक्तियों का उपयोग किया गया है जिससे भाषा सुन्दर, शक्ति-सम्पन्न तथा चटपटी हो गयी है : . “पूत का लक्षण पालने में ।"(पृ. १४ एवं ४८२) - "क्या पता नहीं तुझको !/छोटी को बड़ी मछली साबुत निगलती है यहाँ ।” (पृ. ७१) - "मुँह में राम/बगल में छुरी।" (पृ. ७२) __ “आधा भोजन कीजिए/दुगुणा पानी पीव । तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव!" (पृ. १३३) 0 “आमद कम खर्चा ज़्यादा/लक्षण है मिट जाने का कूबत कम गुस्सा ज़्यादा/लक्षण है पिट जाने का।" (पृ. १३५) 0 "बिन माँगे मोती मिले/माँगे मिले न भीख ।” (पृ. ४५४) भाषा को व्यावहारिक रूप देने के लिए कवि ने व्यवहार में बोले जाने जोड़े के शब्दों का उदारता के साथ प्रयोग किया है, "दिन-दहाड़े''(पृ. २३५), "फूला-फला'(पृ. ३००), "कटी-पिटी'(पृ. ३३२), "अड़ोस-पड़ोस" (पृ. ३१३), "चमक-दमक'' (पृ. ३४६), "टूटे-फूटे' (पृ. ४३५), "टेढ़ी-मेढ़ी' (पृ. ४४४)। इन शब्दों के प्रयोग से भाषा में स्वाभाविकता आई है। स्वाभाविकता और प्रेषणीयता का कवि को इतना ध्यान है कि उसने उर्दू शब्दों का प्रयोग भी नि:संकोच किया है, यथा : "बेशक" (पृ. २२३), "क़िस्मतवालों' (पृ. २२२), "मासूम' (पृ. २३९), "आसीन" (पृ. २५५), "ताज़ी महक" (पृ. २६४), "अफ़सोस' (पृ. २९२), "क़ीमत" (पृ. ३१)।'
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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