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362 :: मूकमाटी-मीमांसा
एक नहीं हो सकते ।"(पृ. ४१९) ५५. “देह-नेह करने से ही/आज तक तुझे ____ विदेह-पद उपलब्ध नहीं हुआ।" (पृ.४२९) ५६. "जितने भी पद हैं/वह विपदाओं के आस्पद हैं।” (पृ. ४३४) ५७. "जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती
धरती यह।" (पृ. ४४१) ५८. "आचरण के सामने आते ही/प्राय: चरण थम जाते हैं।" (पृ. ४६२) ५९. “चोर इतने पापी नहीं होते/जितने कि/चोरों को पैदा करने वाले।” (पृ.४६८) ६०. “सज्जन अपने दोषों को/कभी छुपाते नहीं।" (पृ. ४६८) ६१. "कषाय के वेग को/संयत होने में समय लगता ही है !" (पृ. ४७३) ६२. “पर्त से केन्द्र की ओर/जब मति होने लगती है
___ अनर्थ से अर्थ की ओर/तब गति होने लगती है।" (पृ. १७५) ६३. "समर्पण के बाद समर्पित की/बड़ी-बड़ी परीक्षायें होती हैं।" (पृ. ४८२) ६४. “बन्धन-रूप तन,/मन और वचन का
आमूल मिट जाना ही/मोक्ष है।” (पृ. ४८६) सामयिक राजनीति : देश और काल का प्रत्येक रचना में प्रभाव देखा जाता है । प्रस्तुत महाकाव्य भी इससे अछूता नहीं रहा । कवि ने देश में फैले आतंकवाद को लेकर पंजाब के तत्कालीन मुख्यमन्त्री प्रकाशसिंह बादल और उनके स्थान पर आए मुख्यमन्त्री सुरजीत सिंह बरनाला के उपनामों का मानो गोपनीय ढंग से उल्लेख किया है । सहज रूप से ये नाम समझ में नहीं आते हैं। पंक्तियाँ हैं :
"बादल दल छंट गये हैं/काजल-पल कट गये हैं।
वरना, लाली क्यों फूटी है/सुदूर "प्राची में !" (पृ. ४४०) ___ इसी प्रकार राष्ट्रसन्त कवि ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक को मात्र 'जिया' नाम से सम्बोधित करके, दया भाव और समष्टि से जीने का उपदेश दिया है । द्रष्टव्य हैं निम्न पंक्तियाँ :
"सदय बनो !/अदय पर दया करो/अभय बनो ! सभय पर किया करो अभय की/अमृत-मय वृष्टि
सदा सदा सदाशय दृष्टि/२ जिया, समष्टि जिया करो!" (पृ. १४९) यमक और श्लेष : प्रस्तुत महाकाव्य में यमक और श्लेष अलंकारों के प्रयोग भी हुए हैं । उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं कुछ उद्धरण :
'रे जिया ! समष्टि जिया करो।" (पृ. १४९ ) यहाँ 'जिया' पद दो बार आया है। प्रथम पद का अर्थ है-जिया उल हक और दूसरे पद का अर्थ है जीवन जीना । इसमें यमक अलंकार है।