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मूकमाटी-मीमांसा :: 361
३०. “छल-बल से/हल नहीं निकलने वाला कुछ भी।” (पृ. २६१) ३१. “असंयमी संयमी को क्या देगा ?/विरागी रागी से क्या लेगा ?"(पृ. २६९) ३२. “नियम-संयम के सम्मुख/असंयम ही नहीं, यम भी ___ अपने घुटने टेक देता है।" (पृ. २६९) ३३. “अग्नि-परीक्षा के बिना आज तक/किसी को भी मुक्ति मिली नहीं, ____ न ही भविष्य में मिलेगी।" (पृ. २७५) ३४. "शिष्टों पर अनुग्रह करना/सहज-प्राप्त शक्ति का ___सदुपयोग करना है, धर्म है।" (पृ. २७६-२७७) ३५. “अध्यात्म स्वाधीन नयन है/दर्शन पराधीन उपनयन ।" (पृ. २८८) ३६. “भक्त का भाव अपनी ओर/भगवान को भी खींच ले आता है।"(पृ. २९९) ३७. “परीक्षक बनने से पूर्व/परीक्षा में पास होना अनिवार्य है।” (पृ. ३०३) ३८. "मृदुता और काठिन्य की सही पहचान/तन को नहीं,
हृदय को छूकर होती है।” (पृ. ३११) ३९. "श्रमण का श्रृंगार ही/समता-साम्य है"।" (पृ. ३३०) ४०. "पर से स्व की तुलना करना/पराभव का कारण है
दीनता का प्रतीक भी।" (पृ. ३३९) ४१. "बिना सन्तोष, जीवन सदोष है।" (पृ. ३३९) ४२. “स्व की उपलब्धि ही सर्वोपलब्धि है।" (पृ. ३४०) ४३. “भाग्यशाली भाग्यहीन को/कभी भगाते नहीं, प्रभो !
भाग्यवान् भगवान् बनाते हैं।” (पृ. ३४२) ४४. “वैराग्य की दशा में/स्वागत-आभार भी/भार लगता है।" (पृ. ३५३) ४५. “कोष के श्रमण बहुत बार मिले हैं/होश के श्रमण होते विरले ही।"(पृ. ३६१) ४६. "श्रम करे सो श्रमण!" (पृ. ३६२) ४७. “जो रागी है और द्वेषी भी,/सन्त हो नहीं सकता वह।" (पृ. ३६३) ४८. "तन और मन का गुलाम ही/पर-पदार्थों का स्वामी बनना चाहता है।"(पृ.३७५) ४९. "स्वभाव समता से विमुख हुआ जीवन/अमरत्व की ओर नहीं __समरत्व की ओर,/मरण की ओर, लुढ़क रहा है।" (पृ. ३८१) ५०. "मात्र दमन की प्रक्रिया से/कोई भी क्रिया ____ फलवती नहीं होती है।"(पृ. ३९१) ५१. "माटी, पानी और हवा/सौ रोगों की एक दवा।" (पृ. ३९९) ५२. "सिद्धान्त अपना नहीं हो सकता/सिद्धान्त को अपना सकते हम।"(पृ. ४१५) ५३. "क्रोध की क्षमता है कितनी!/क्षमा के सामने कब तक टिकेगा वह ?"(पृ.४१६) ५४. “गन्धसेवी होने मात्र से/भ्रमर और मक्षिका