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मूकमाटी-मीमांसा :: 359
भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है।" (पृ. २८) ५." 'गद' का अर्थ है रोग/'हा' का अर्थ है हारक/मैं सबके रोगों का हन्ता बनूँ
"बस,/और कुछ वांछा नहीं/गद-हा गदहा"!" (पृ. ४०) नारी सम्बन्धी अवधारणा : कवि का महिलाओं से सम्बन्धित चिन्तन द्रष्टव्य है, विशेषत: महिलाओं के नामों की व्याख्याओं में । इसके लिए अवलोकनीय हैं-नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, माता, अंगना आदि शब्द (पृ.२०१-२०७)।
___ इन परिभाषाओं में तो कवि की स्त्री-सम्बन्धी अवधारणा द्रष्टव्य है ही, साथ ही काव्य में अन्य स्थलों में भी यह अवधारणा दिखाई देती है। वे स्थल हैं :
१. "ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करना/सब के वश की बात नहीं, __ और वह भी"/स्त्री-पर्याय में-/अनहोनी-सी घटना !" (पृ. २) २. "स्वस्त्री हो या परस्त्री,/स्त्री-जाति का स्वभाव है,/कि ___ किसी पक्ष से चिपकी नहीं रहती वह।" (पृ. २२४) ३. “इसीलिए भूलकर भी/कुल-परम्परा संस्कृति का सूत्रधार
स्त्री को नहीं बनाना चाहिए।/और/गोपनीय कार्य के विषय में विचार-विमर्श-भूमिका/नहीं बताना चाहिए।" (पृ. २२४) ४. "माँ की ममता है वह/सन्तान के प्रति/वंश-अंश के प्रति
ऐसा कदम नहीं उठा सकती/""कभी भूलकर भी, सब कुछ कष्ट-भार/अपने ऊपर ही उठा लेती है/और
भीतर-ही-भीतर/चुप्पी बिठा लेती है।” (पृ. ५५) ५. “सन्तान की अवनति में/निग्रह का हाथ उठता है माँ का/और
सन्तान की उन्नति में/अनुग्रह का माथ उठता है माँ का।" (पृ. १४८) ६. “सन्तान की प्रकृति शैतानी है,/फिर भी सन्तान पर
माँ की कृपा होती ही है।" (पृ. ४७५) ७. “माँ की गौरवपूर्ण गोद में/गुस्से का घुस आना/न सुना, न देखा
जिस गोद में सुख के क्षण/सहज बीतते हैं शिशु के।” (पृ. ४७६) जीवन-मूल्य : कवि ने जीवन-मूल्यों के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया है। उनके विचार भिन्न-भिन्न विषयों पर आश्रित हैं। कुछ उद्धरणीय अंश निम्न प्रकार हैं :
१. "अनुकूलता की प्रतीक्षा करना/सही पुरुषार्थ नहीं है।" (पृ. १३) । २. “संघर्षमय जीवन का/उपसंहार/नियमरूप से/हर्षमय होता है।" (पृ. १४) ३. “दुःख की वेदना में/जब न्यूनता आती है ___दुःख भी सुख-सा लगता है।" (पृ. १८) ४. “पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है/और
पीड़ा की इति ही/सुख का अथ है ।" (पृ. ३३)