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358 :: मूकमाटी-मीमांसा
स : ऐसे शब्द जिनका वर्ण-विच्छेद द्वारा भिन्न अर्थ निकाला गया है :
१. “ओरी रस्सी ! / ... आज तू / रस - सी नहीं !” (पृ. ६२) २. " आदमी वही है / जो यथा - योग्य / सही आदमी है।" (पृ. ६४)
३. " यही मेरी कामना है कि / आगामी छोरछीन काल में
बस इस घट में / काम ना रहे !" (पृ. ७७ )
४. " हर्षा की वर्षा की है / तेरी शीतलता ने / माँ ! शीत-लता हो तुम !" (पृ. ८५)
५. " किसलय ये किसलिए/किस लय में गीत गाते हैं ?" (पृ. १४१) ६. " मुख से बाहर निकली है रसना / थोड़ी-सी उलटी-पलटी,
कुछ कह रही - सी लगती है - / भौतिक जीवन में रस ना । " (पृ. १८० ) ७. "मैं अंगना हूँ / परन्तु, / मात्र अंग ना हूँ।” (पृ. २०७) ८. "हमें नाग और नागिन / ना गिन, हे वरभागिन् !” (पृ. ४३२ ) ९. "हम तो अपराधी हैं / चाहते अपरा 'धी' हैं।" (पृ. ४७४ )
द: ऐसे शब्द जहाँ वर्ण-मेल से अर्थ बदला गया है :
१. " मानव - मन पर / हिंसा का प्रभाव ना हो, / दिवि में, भू में
भूगर्भों में / जिया-धर्म की / दया-धर्म की / प्रभावना हो ं!'' (पृ. ७७-७८) २. “तामसता काय-रता है / वही सही मायने में / भीतरी कायरता है !" (पृ. ९४ ) ३. "न- 'मन' हो, तब कहीं / नमन हो 'समण' को ।” (पृ. ९७ )
४. “मर, हम 'मरहम' बनें।” (पृ. १७५)
५. “धी - रता ही वृत्ति वह / धरती की धीरता है ।" (पृ. २३३)
६. " काय - रता ही वृत्ति वह / जलधि की कायरता है ।" (पृ. २३३)
७. "कम बलवाले ही / कम्बलवाले होते हैं।” (पृ. ९२)
८. “मैं दो गला / ... मैं दोगला ।” (पृ. १७५)
पारिभाषिक शब्द : शब्दों में प्रयुक्त वर्णाश्रित व्याख्याओं में कवि का चिन्तन द्रष्टव्य है । प्रस्तुत हैं उदाहरणार्थ ऐसी कतिपय परिभाषाएँ :
१.
२.
""
'सं' यानी समीचीन / सार यानी सरकना"
जो सम्यक् सरकता है/ वह संसार कहलाता है।” (पृ. १६१)
""
'नि' यानी निज में ही / 'यति' यानी यतन - स्थिरता है
अपने में लीन होना ही नियति है ।" (पृ. ३४९)
३. “ 'पुरुष' यानी आत्मा - परमात्मा है / 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य - प्रयोजन है आत्मा को छोड़कर / सब पदार्थों को विस्मृत करना ही
४.
सही पुरुषार्थ है ।" (पृ. ३४९)
"
'कुं' यानी धरती / और / 'भ' यानी भाग्य -,
-/ यहाँ पर जो