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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 357 "उपादान का कोई यहाँ पर/पर-मित्र है . "तो वह/निश्चय से निमित्त है जो अपने मित्र का/निरन्तर नियमित रूप से/गन्तव्य तक साथ देता है।” (पृ.४८१) सल्लेखना : जैन दर्शन में मरण के अनेक प्रकार बताए गए हैं। सल्लेखना भी मरण का ही एक भेद है । ऐसा मरण अच्छा माना गया है । कवि की दृष्टि में सल्लेखना का स्वरूप निम्न प्रकार है : "सल्लेखना, यानी/काय और कषाय को/कृश करना होता है, बेटा ! काया को कृश करने से/कषाय का दम घुटता है/"घुटना ही चाहिए । और/काया को मिटाना नहीं,/मिटती-काया में/मिलती-माया में म्लान-मुखी और मुदित-मुखी/नहीं होना ही/सही सल्लेखना है, अन्यथा आतम का धन लुटता है, बेटा!" (पृ. ८७) श्रीफल : श्रीफल, जिसे लौकिक भाषा में नारियल कहा जाता है, धार्मिक अवसर पर मंगल के रूप में उसे मंगल कलश पर विराजमान किया जाता है। अन्य फल भी हैं किन्तु श्रीफल को ही यह सम्मान क्यों प्राप्त हुआ ? इस सन्दर्भ में कवि का चिन्तन है : “प्राय: सब की चोटियाँ/अधोमुखी हुआ करती हैं,/परन्तु श्रीफल की ऊर्ध्वमुखी है ।/हो सकता है/इसीलिए श्रीफल के दान को मुक्ति-फल-प्रद कहा हो।" (पृ. ३११) लौकिक पक्ष शब्द प्रयोग : प्रस्तुत महाकाव्य में शब्दों की प्रयोग शैली इतर महाकाव्यों की अपेक्षा भिन्न है । इसमें सन्धिविच्छेद द्वारा शब्द के मूल अर्थ में परिवर्तन दर्शाया गया है। यह दो प्रकार से हुआ है-मूल शब्द का शब्द-विच्छेद पूर्वक दो या कोई एक वर्ण बदलकर और केवल वर्ण-विच्छेद द्वारा। ___ अ : ऐसे शब्द जिनमें सन्धि-विच्छेद के पश्चात् दो वर्ण बदलकर अभीष्ट अर्थ प्रस्तुत किया गया है। उदाहरणार्थ : "निशा का अवसान हो रहा है/उषा की अब शान हो रही है।” (पृ. १) ब : मूल शब्दों का विच्छेद करके जहाँ केवल एक वर्ण बदलकर अभीष्ट अर्थ प्रस्तुत किया गया है। कुछ ऐसे शब्द हैं : १. “वही रसना है वही वसना है/किसी के भी रही वश ना है।" (पृ. ४५६) २. “ओरी कलशी!/कहाँ दिख रही है तू/कल "सी ?" (पृ. ४१७) ३. "ओ माँ ! जलदेवता!/हमें यह दे बता।" (पृ. ४५६) ४. "माटी के कुम्भ में भरे पायस ने/पात्र-दान से पा यश उपशम-भाव में कहा, कि/तुम में पायस ना है तुम्हारा पाय सना है/पाप-पंक से पूरा अपावन ।"(पृ. ३६४) ५. "चरण को छोड़कर/कहीं अन्यत्र कभी भी चर न ! चर ना !! चर ना !!!" (पृ. ३५९) ६. “हम हैं कृपाण/हम में कृपा न!" (पृ. ७३)
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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