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350 :: मूकमाटी-मीमांसा
हरित-भरित विहँसित हो/गुण के फूल विलसित हों
नाशा की आशा मिटे/आमूल महक उठे/"बस !" (पृ. ४७८) व्युत्पत्ति के अनुसार 'ज्ञान के प्रति अनुराग'-दर्शन है । दर्शन की इस परिभाषा में 'ज्ञान' शब्द से तात्पर्य मात्र तथ्यों का बोध ही नहीं होता, वरन् विश्व तथा मानव-जीवन सम्बन्धी गहनतम प्रश्नों की जानकारी भी है। अनुराग शब्द केवल बौद्धिक छान-बीन तक सीमित नहीं है, उसका भावात्मक पक्ष भी महत्त्वपूर्ण है, जो दर्शन की नीरसता को साहित्य की व्यावहारिकता तथा सर्वहित की मंगलमय पुण्यभावना से जोड़ता है। 'मूकमाटी' के कवि ने इस रचना में ज्ञान तथा अनुराग में जो भावात्मक समन्वय स्थापित किया है, वह इस रचना की विशेष उपलब्धि है। साथ ही इस कवि ने दर्शन सम्बन्धी तत्त्व, ज्ञान व तर्कशास्त्रीय पक्षों की नैतिक तथा कलात्मक जीवन स्थितियों के माध्यम से जो व्याख्या की है, वह जीवन से जुड़े हुए कई दार्शनिक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करती है।
वस्तुत: जीवन-दर्शन कलाकार की जीवन की आलोचना होती है और इस दार्शनिक कवि ने कुम्भ की सृजनशीलता के द्वारा मानवीय जीवन सम्बन्धी जिन लघुतम तथा उदात्त जीवन स्थितियों की व्याख्या की है, वह उसे एक कवि के साथ-साथ दार्शनिक व्याख्याकार की संज्ञा से अभिहित कर सकता है। निःसन्देह इस कवि के पास कविता के साथ-साथ निश्चित काव्य विधि है, जिसे अपनाकर वह जीवन-दर्शन की व्याख्या प्रस्तुत करता है। इसीलिए हमारा मत है कि आचार्य विद्यासागर दार्शनिक व्याख्याकार अधिक हैं और कवि कम ।
पृष्ठ १४८. सुत को प्रसूत कर. आँखों में रोती हुई कमगा,
..... प्रति माँकी