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________________ 342 :: मूकमाटी-मीमांसा "ढोल गँवार शूद्र पशु नारी ये सब ताड़न के अधिकारी । " सन्त कबीर जैसे समाज-सुधारक सन्त ने भी नारी को वह सम्मान नहीं दिया, जिसकी वह अधिकारिणी है : "नारी तो हमहूँ करी, तब ना किया विचार ।" डॉ. राधाकृष्णन ने सत्य ही कहा है : "बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रचार के उपरान्त जब निवृत्ति मार्ग का प्रचार प्रारम्भ हुआ, तब स्त्रियों को समाज में अनावश्यक प्राणी के रूप में घोषित कर दिया गया। संयासियों को स्त्रियों से दूर करने के लिए उन्हें बुराई का घर बताया गया एवं दुनियादारी का मूल बताकर उन्हें घृणा का पात्र कहा गया । " ( धर्म और समाज, पृ. १६७) दिनकरजी को यह शिकायत थी कि इतिहास ने नारी के प्रति न्याय नहीं किया : "नारी त्रिया नहीं, वह केवल क्षमा, शान्ति, करुणा है । इसीलिए इतिहास पहुँचता जभी निकट नारी के, हो रहता वह अचल या कि फिर कविता बन जाता है ।" इतिहास ने नारी के प्रति न्याय नहीं किया, वह नारी गाथा के अनेक प्रसंगों पर मौन रहा, परन्तु कवियों ने नारी अपने काव्य में उचित स्थान देने का प्रयत्न किया । कवि-मनीषी आचार्य विद्यासागर ने नारी की गरिमा, योग्यता, I शक्ति और सामर्थ्य पर गहराई से मनन- चिन्तन किया और 'मूकमाटी' में उसे वाणी प्रदान की है। नारी के अनेक रूपों का उन्होंने अपने महाकाव्य में प्रतिपादन किया है और सबसे बढ़कर उसके मातृ रूप का जय गान किया है। नारी का ऐसा मुखर जय-गान अन्यत्र दुर्लभ है । पृष्ठ ३३३-३३४ पराग-प्यासा भ्रमर-दल वह भ्राम्री-वृत्ति कही जाती सन्तों की ! O
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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