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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 341 हो, अर्थात् काम रूपी पुरुषार्थ निर्दोष हो, इसलिए वह गर्भ-धारण करती है । अर्थ रूपी पुरुषार्थ के मार्ग में वह संग्रहवृत्ति और अपव्ययवृत्ति दोनों से अर्जित अर्थ का समुचित वितरण करके पुरुष को सद्मार्ग की ओर प्रेरित करती है । गृहस्थ धर्म के पालन में वह दान-पूजा-सेवा आदि सत्कर्मों द्वारा धर्म परम्परा की रक्षा करती है। __ श्रुत-सूक्तियों के अनुसार घर में सुख-सुविधाओं का जो भण्डार लाए, वह ‘सुता' कहलाती है । 'सु' का अर्थ है सुहावनी अच्छाइयाँ, इसमें 'ता' प्रत्यय जोड़ने पर सुता बनता है- सुख-सुविधाओं का परम स्रोत सुता। जिस स्त्री में दो हित निहित हों, वह 'दुहिता' कहलाती है। वह अपना हित तो साध ही लेती है, पतित से पतित पति का जीवन भी हितों द्वारा सार्थक बना देती है। आचार्य विद्यासागर के अनुसार : "उभय-कुल मंगल-वर्धिनी/उभय-लोक-सुख-सर्जिनी स्व-पर-हित सम्पादिका/कहीं रहकर किसी तरह भी हित का दोहन करती रहती/सो दुहिता कहलाती है।" (पृ. २०६) आचार्यश्री ने 'मातृ' शब्द की महत्ता भी प्रतिपादित की है। प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञान, प्रमेय का अर्थ होता है ज्ञेय और प्रमातृ को सन्तजन ज्ञाता कहते हैं । जानने की शक्ति मातृ-तत्त्व के सिवा कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं होती, इसीलिए सबकी आधार-शिला कोई पुरुष नहीं होता, सबकी जननी मातृ-तत्त्व ही होती है : "मातृ-तत्त्व की अनुपलब्धि में/ज्ञेय-ज्ञायक सम्बन्ध ठप् ! ऐसी स्थिति में तुम ही बताओ,/सुख-शान्ति मुक्ति वह किसे मिलेगी,क्यों मिलेगी/किस विध ?/इसीलिए इस जीवन में माता का मान-सम्मान हो,/उसी का जय-गान हो सदा,/धन्य!" (पृ. २०६) स्त्री 'अंगना'शब्द से भी विभूषित की जाती है । अंगना का अर्थ है- अंग+ना, अर्थात् वह केवल अंग नहीं है । उसके अंग-प्रत्यंग का शारीरिक सौन्दर्य ही उसका परिचय नहीं है, उसकी शक्ति असीम है, केवल उसे पहचानने की दृष्टि पुरुष के पास होनी चाहिए। स्त्री को उसके अंग से परे देखने का प्रयत्न किया जाय तो बहुत कुछ हासिल हो सकता है : "अंग के सिवा भी कुछ /माँगने का प्रयास करो, जो देना चाहती हूँ,/लेना चाहते हो तुम ! 'सो' चिरन्तन शाश्वत है/सो निरंजन भास्वत है भार-रहित आभा का आभार मानो तुम!" (पृ. २०७) नारी को अत्यन्त सीमित दृष्टि से देखने वालों को मैथिलीशरण गुप्त ने 'द्वापर' में धिक्कारा है : "हाय, वधू ने क्या वर-विषयक एक वासना पाई ? नहीं और कोई क्या उसका पिता, पुत्र या भाई ? नर के बाँटे क्या नारी की नग्न मूर्ति ही आई ? माँ, बेटी या बहिन हाय क्या संग नहीं वह लाई ?" सन्त तुलसीदास तक ने नारी के साथ न्याय नहीं किया। उन्होंने उसे अत्यन्त निम्न कोटि का दर्जा प्रदान किया :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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