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________________ मूकमाटी-मीमांसा : : 337 साधु-बल से रहित हुआ / बाहु-बल से सहित हुआ । वराह-राह का राही राहु/ हिताहित- विवेक-वंचित स्वभाव से क्रूर, क्रुद्ध हुआ / रौद्र- पूर, रुष्ट हुआ कोलाहल किये बिना / एक-दो कवल किये बिना / बस, साबुत ही निगलता है प्रताप - पुंज प्रभाकर को । / सिन्धु में बिन्दु-सा माँ की गहन - गोद में शिशु-सा / राहु के गाल में समाहित हुआ भास्कर । दिनकर तिरोहित हुआ सो / दिन का अवसान - सा लगता है दिखने लगा दीन-हीन दिन / दुर्दिन से घिरा दरिद्र गृही - सा । " (पृ. २३७-२३८) करुण और वात्सल्य रस अपना परिचय स्वयं अपनी भाषा में देते हुए इस काव्य में प्राप्त होते हैं। उन रसों का सुसंवेदन कर आचार्यश्री ने उत्तम विश्लेषण क्षमता का परिचय दिया है : 'करुणा-रस जीवन का प्राण है /... वात्सल्य - जीवन का त्राण है ...शान्त - रस जीवन का गान है / ... करुणा - रस उसे माना है, जो कठिनतम पाषाण को भी / मोम बना देता है, / वात्सल्य का बाना है जघनतम नादान को भी / सोम बना देता है ।" (पृ. १५९) और शान्त रस का परिचय देते हुए स्वयं शान्त रस की साकार मूर्ति आचार्यश्री मानों स्वयं अपना परिचय दे रहे "सब रसों का अन्त होना ही - / शान्त - रस है । " (पृ. १६० ) यह समूचा महाकाव्य शान्त रस का उदाहरण ही है। शान्त रस का स्थायीभाव निर्वेद है यानी संसार से विमुखता तथा पर से स्व की ओर दृष्टि । इस महाकाव्य में समस्त पात्र निज में निजता की खोज करते हैं : "अपने को छोड़कर / पर - पदार्थ से प्रभावित होना ही मोह का परिणाम है / और / सब को छोड़कर अपने आप में भावित होना ही / मोक्ष का धाम है।” (पृ. १०९-११०) माटी का कुम्भ शिवपथगामी मुनिराज के पाद - प्रक्षालन कर अपने को धन्य मानता है और कह उठता है : " शरण, चरण हैं आपके, / तारण तरण जहाज, भव-दधि तट तक ले चलो / करुणाकर गुरुराज !" (पृ. ३२५) इस प्रकार इस महाकाव्य में रसों की अपनी स्थिति का परिचय अपने आप कराते हुए कवि ने स्वयं सभी रसों शान्त में डुबो दिया है। रस विवेचन के महान् संस्कृताचार्य अभिनवगुप्त (११ वीं शताब्दी) ने शान्त रस को रसराज कहा तथा रस के स्वाद का कलात्मक विवेचन कर इसे दृढ़ दार्शनिक आधार भूमि प्रदान की है। 'मूकमाटी' में छन्दों के सम्बन्ध में इतना कहना पर्याप्त होगा कि मात्रिक और वर्णिक छन्द अपनी सीमा में आबद्ध रहने के कारण कवि के भाव - प्रवाह में अवरोध उत्पन्न कर सकते थे । हिन्दी कविता में तुकविहीन छन्द को जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त और सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवियों ने अपनी कविता का आधार बना कर इस लयबद्ध छन्द को मान्यता प्रदान की। तब से यह प्रवहमान छन्द हिन्दी कविता का प्रिय आधार बन गया है। यह
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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