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330 :: मूकमाटी-मीमांसा
फूल से नहीं, फल से/तृप्ति का अनुभव होता है।" (पृ. १०७) ___ तृतीय खण्ड में चार पुरुषार्थ एवं नैतिक मूल्यों के द्वारा लोककल्याण की कामना वर्णित है। इस खण्ड में कुम्भकार ने माटी की विकास-यात्रा के माध्यम से, पुण्य कर्म के सम्पादन से उपजी श्रेयस्कर उपलब्धि का चित्रण किया है । चतुर्थ खण्ड में जीवन का सार छिपा हुआ है । जैन मुनि ने विखण्डित समाज को एकाकार करने में व्यक्ति-व्यक्ति के कर्म का फल अन्त में किस प्रकार मिलता है उसको तथा नारी भावना को जानने के लिए न जाने कितने विस्तृत अर्थों में स्पष्ट किया है। कुम्भकार ने घट को रूपाकार तो दे दिया है, अब उसे तपाना है। इसमें कवि की कितनी ही कल्पनाएँ समाहित हैं। 'मूकमाटी' वर्तमान युग की एक महत्त्वपूर्ण काव्य कृति एवं हिन्दी साहित्य की एक अमर रचना है।
___ 'मूकमाटी' का विश्लेषणात्मक अनुशीलन इस प्रकार से किया जा सकता है- “मूकमाटी : एक समीक्षात्मक अध्ययन'- प्रथम- 'मूकमाटी' का सृजन, द्वितीय- कथावस्तु, तृतीय- पात्र एवं चरित्र चित्रण, चतुर्थ- महाकाव्यत्व, पंचम- अनुभूति पक्ष, षष्ठ- अभिव्यक्ति पक्ष, सप्तम- दर्शन एवं अष्टम- हिन्दी काव्य परम्परा में 'मूकमाटी' का स्थान।
'मूकमाटी' का सृजन : स्वयं को विद्यासागरजी ने 'गुरुचरणारविन्द-चंचरीक' के रूप में लिखा है। 'मानसतरंग' में काव्य सृजन का उद्देश्य इन शब्दों में वर्णित है : “ब्रह्मा को सृष्टि का कर्ता, विष्णु को सृष्टि का संरक्षक और महेश को सृष्टि का विनाशक मानना मिथ्या है, इस मान्यता को छोड़ना ही आस्तिकता है। ...ऐसे ही कुछ मूल-भूत सिद्धान्तों के उद्घाटन हेतु इस कृति का सृजन हुआ है और यह वह सृजन है जिसका सात्त्विक सान्निध्य पाकर रागातिरेक से भरपूर शृंगार-रस के जीवन में भी वैराग्य का उभार आता है; ...जिसमें शब्द को अर्थ मिला है और अर्थ को परमार्थ ; जिसमें नूतन शोध-प्रणाली को आलोचन के मिष, लोचन दिये हैं; जिसने सृजन के पूर्व ही हिन्दी जगत् को अपनी आभा से प्रभावित-भावित किया है। प्रत्यूष में प्राची की गोद में छुपे भानु-सम; जिसके अवलोकन से काव्य-कला-कुशलकवि तक स्वयं को आध्यात्मिक-काव्य-सृजन से दूर पाएँगे; जिसकी उपास्य-देवता शुद्ध-चेतना है । जिसके प्रतिप्रसंग-पंक्ति से पुरुष को प्रेरणा मिलती है- सुसुप्त चैतन्य-शक्ति को जागृत करने की, जिसने वर्ण-जाति-कुल आदि व्यवस्था-विधान को नकारा नहीं है परन्तु जन्म के बाद आचरण के अनुरूप, उच्च-नीचता रूप परिवर्तन को स्वीकारा है। ...जिसका प्रयोजन सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्रों में प्रविष्ट हुई कुरीतियों को निर्मूल करना और युग को शुभ-संस्कारों से संस्कारित कर भोग से योग की ओर मोड़ देकर वीतराग श्रमण-संस्कृति को जीवित रखना है'"और जिसका नामकरण हुआ है 'मूकमाटी' ।
".."मढ़िया जी (जबलपुर) में/द्वितीय वाचना का काल था सृजन का अथ हुआ और/नयनाभिराम - नयनागिरी में
पूर्ण पथ हुआ/समवसरण मन्दिर बना/जब गजरथ हुआ।" (मानस-तरंग, पृ. XXIV) कथावस्तु : मिट्टी युगों से कुम्भकार की प्रतीक्षा करती रही है कि कुम्भकार उद्धार करके उसकी अव्यक्त सत्ता में से घट की मंगल मूर्ति उद्घाटित करेगा। इस काव्य में भक्त सेठ अन्त में पूजा के लिए वही घट लेता है ।
पात्र एवं चरित्र-चित्रण : काव्य के नायक स्वयं गुरु हैं, अन्तिम नायक अर्हन्त देव हैं । आध्यात्मिक रचना होने के कारण नायक-नायिका का विभाजन लौकिक एवं पारलौकिक है । माटी इस महाकाव्य की नायिका है । सेठ सहनायक है । स्वर्णकलश एक आतंकवादी दल आहूत करता है । वह खलनायक माना गया है जिसने त्राहि-त्राहि मचा दी है सेठ परिवार में । सेठ की क्षमा-प्रार्थना से आतंकवादियों का हृदय-परिवर्तन होता है । कथा विस्तृत होती चली जाती है। ये कुछ ही पात्र हैं जो उभरकर सामने आए हैं।