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मूकमाटी-मीमांसा :: 327
क्षमा की मूर्ति/क्षमा का अवतार है वह।" (पृ. १०५) कवि की मान्यता है :
"कुलाल-चक्र यह, वह सान है/जिस पर जीवन चढ़कर अनुपम पहलुओं से निखर आता है,/पावन जीवन की अब शान का कारण है।"
(पृ. १६२) खण्ड तीन पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' में कवि ने पुण्य कर्मों द्वारा सम्पादित श्रेयस्कर उपलब्धियों का वर्णन किया है । परोपकार परायण निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं :
“वसुधा की सारी सुधा/सागर में जा एकत्र होती/फिर प्रेषित होती ऊपर.. और/उसका सेवन करता है/सुधाकर, सागर नहीं
सागर के भाग्य में क्षार ही लिखा है।" (पृ. १९१) स्त्री जीवन की विविधि सार्थक अभिव्यक्तियाँ काव्य में सन्त कवि ने बड़े ही तार्किक ढंग से प्रस्तुत की हैं :
“ 'स' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं। धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है
सो'"स्त्री कहलाती है।" (पृ.२०५) साधना के स्वरूप का विश्लेषण करता हुआ कवि कहता है :
"जल और ज्वलनशील अनल में/अन्तर शेष रहता ही नहीं। साधक की अन्तर-दृष्टि में।/निरन्तर साधना की यात्रा/भेद से अभेद की ओर वेद से अवेद की ओर/बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए/अन्यथा,
वह यात्रा नाम की है/यात्रा की शुरूआत अभी नहीं हुई है।" (पृ. २६७) खण्ड चार 'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' में कवि ने कुम्भकार द्वारा निर्मित घट को अग्नि से तपा कर पूर्णता प्रदान करने के विविध चित्रों के साथ ही जीवन के विविध मानवीय एवं दार्शनिक पक्षों को भी उजागर किया है :
“नियम-संयम के सम्मुख/असंयम ही नहीं, यम भी
अपने घुटने टेक देता है।" (पृ. २६९) मानवीय मूल्यों पर आधारित निम्न पंक्तियाँ अत्यन्त सार्थक हैं :
"निर्बल-जनों को सताने से नहीं,/बल-संबल दे बचाने से ही बलवानों का बल सार्थक होता है।" (पृ. २७२)