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324 :: मूकमाटी-मीमांसा
कुछ स्थलों पर शब्द की पुनरुक्ति द्वारा अर्थ भंगिमा का विधान हुआ है। इस दृष्टि से निम्नलिखित उदाहरण में 'पानी' शब्द का प्रयोग द्रष्टव्य है :
"हे मानी, प्राणी !/ पानी को तो देख, / और अब तो पानी-पानी हो जा..!” (पृ. ५३)
निम्नांकित उदाहरण में भंग पद द्वारा 'परखो' तथा 'अपना लो' में भी यही प्रवृत्ति परिलक्षित होती है :
" किसी विध मन में / मत पाप रखो, / पर, खो उसे पल-भर परखो पाप को भी / फिर जो भी निर्णीत हो, हो अपना, लो, अपनालो उसे !” (पृ. १२४)
कहीं-कहीं आचार्यश्री ने शब्दों की स्वानुभूत परिभाषाएँ भी निर्धारित की हैं, यथा :
"संगीत उसे मानता हूँ / जो संगातीत होता है / और
प्रीति उसे मानता हूँ/जो अंगातीत होती है ।" (पृ. १४४-१४५)
स्त्री के विभिन्न पर्यायों – नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, मातृ, अंगना का आचार्यश्री ने उपर्युक्त विभिन्न शैलियों में सटीक निर्वचन किया है।
आचार्यश्री ने ग्रन्थ की समाप्ति तक पहुँचते-पहुँचते 'समाजवाद' की अर्थसिद्धि करते हुए स्वयं शब्दार्थ के महत्त्व की ओर संकेत किया है :
" अरे कम-से-कम / शब्दार्थ की ओर तो देखो !" (पृ. ४६१ )
इस प्रकार शब्दों में नवीन अर्थों के आधान की दृष्टि से 'मूकमाटी' महाकाव्य निश्चय ही अद्वितीय है ।
पृष्ठ ४३ अधोमुखी जीवन ऊर्ध्वमुखी हो..... आर्य पा जाते हैं, यहाँ पर।