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मूकमाटी-मीमांसा :: 323
४. निर्वचन : पद-भंग द्वारा शब्दार्थ सिद्धि हेतु निर्वचन शैली भी अपनाई गई है। आचार्यश्री के चिन्तन से इस प्रकार के शब्द नवीन अर्थच्छटा से मण्डित हुए हैं, यथा : आदमी : आ-दमी = संयमी
“संयम के बिना आदमी नहीं/यानी/आदमी वही है
जो यथा-योग्य/सही आदमी है ।" (पृ. ६४) , कृपाण : कृपा-न = कृपालु नहीं
__ “कृपाण कृपालु नहीं हैं/वे स्वयं कहते हैं
हम हैं कृपाण/हममें कृपा न !” (पृ. ७३) वसुधैव कुटुम्बकम् : वसु (धन) ही कुटुम्ब है
" “वसुधैव कुटुम्बकम्"/इसका आधुनिकीकरण हुआ है वसु यानी धन-द्रव्य/धा यानी धारण करना/आज
धन ही कुटुम्ब बन गया है/धन ही मुकुट बन गया है जीवन का।" (पृ. ८२) रसना : रस-ना = रस (आनन्द) नहीं
"मुख से बाहर निकली है रसना/थोड़ी-सी उलटी-पलटी,
कुछ कह रही-सी लगती है-/भौतिक जीवन में रस ना!" (पृ. १८०) चरण : चर-न = चर (विचरण) न कर
"स्वयं चरण-शब्द ही/उपदेश और आदेश दे रहा है हितैषिणी आँखों को, कि/चरण को छोड़कर
कहीं अन्यत्र कभी भी/चर न ! चर न !! चर न !!!" (पृ. ३५९) ५. वर्ण-विपर्यय : भाषा विज्ञान में ध्वनि विचार के अन्तर्गत वर्ण-विपर्यय का विवेचन मिलता है पर वहाँ इसके कारण
अर्थ में परिवर्तन नहीं होता है । आचार्यश्री ने शब्दों में वर्ण-विपर्यय (विलोम रूप) द्वारा नवीन अर्थों की उद्भावना की है, उदाहरणार्थ : याद = दया : "स्व की याद ही/स्व-दया है/विलोम-रूप से भी
यही अर्थ निकलता है/या"द द"या।" (पृ. ३८) राही = हीरा : “संयम की राह चलो/राही बनना ही तो/हीरा बनना है
स्वयं राही शब्द ही/विलोम-रूप से कह रहा है
रा"ही"ही"रा।" (पृ. ५६-५७) खरा = राख: "खरा शब्द भी स्वयं/विलोम-रूप से कह रहा है
राख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?/रा"ख"ख"रा"।" (पृ. ५७) लाभ =भला: "सुख या दु:ख के लाभ में भी/भला छुपा हुआ रहता है,
देखने से दिखता है समता की आँखों से,/लाभ शब्द ही स्वयं
विलोम-रूप से कह रहा है-/लाभ "भ"ला"।" (पृ. ८७) तामस = समता : "इसके अंग-अंग में/रग-रग में/विश्व का तामस आ भर जाय
कोई चिन्ता नहीं,/किन्तु, विलोम भाव से/यानी ता"म"स स" म"ता"।" (पृ. २८४)