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________________ मूकमाटी-मीमां क्योंकि पंजाब का आतंकवाद, यदि भरे पेटों का अतिवाद है तो कश्मीर में धार्मिक कट्टरता इसकी तह में है । नक्सलवाद का आतंक भूख और शोषण की प्रतिक्रिया की उपज है तो पूर्वोत्तर का आतंक क्षेत्रीय संकुचन के कारण से । 320 :: शोषण के सम्बन्ध में कृतिकार ने 'पद' को दोषी माना है और इसीलिए अपद की कामना की है, यथा : 0 “पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु / पर को पद - दलित करते हैं, ... जितने भी पद हैं / वह विपदाओं के आस्पद हैं ।" (पृ. ४३४) " समाज का अर्थ होता है समूह / और / समूह यानी सम - समीचीन ऊह - विचार है / जो सदाचार की नींव 1 ... प्रचार-प्रसार से दूर/ प्रशस्त आचार-विचार वालों का O O जीवन ही समाजवाद है ।" (पृ. ४६१) "चोर इतने पापी नहीं होते / जितने कि / चोरों को पैदा करने वाले ।” (पृ. ४६८) जीवन और कुम्भ का सांगोपांग वर्णन आदि से अन्त तक और माटी के उजले जीवन का माटी में मिलकर मुक्ति पा जाना ही 'मूकमाटी' की सारगर्भित कथा है और है अनुभूत प्रेरणा । पृष्ठ १०३ और सुनो ! ----- अब से कब तक ?
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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