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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 315 की विवेचना और विवेकपूर्ण विचार की परिचायक है। तीसरे खण्ड में कुछ अद्भुत और सार्थक व्याख्याएँ रचनाकार द्वारा की गई हैं जिनसे कृति की प्रासंगिता बढ़ी है, यथा : "सर्व-सहा होना ही/सर्वस्व को पाना है जीवन में ।" (पृ. १९०) नारी की मौलिक व्याख्या उल्लेखनीय है : 0 " 'न अरि' नारीअथवा/ये आरी नहीं हैं/सो 'नारी'..।" (पृ. २०२) - “न बला' "सो अबला।” (पृ. २०३) स्त्री जाति के लिए रचनाकार ने जहाँ विविध शब्द व्याख्याएँ कर सम्मान दिया है, वहीं सोचने के लिए कुछ प्रश्न चिह्न भी खड़े कर दिए हैं, यथा : "स्वस्त्री हो या परस्त्री,/स्त्री-जाति का स्वभाव है,/कि किसी पक्ष से चिपकी नहीं रहती वह।। अन्यथा,/मातृभूमि मातृ-पक्ष को/त्याग-पत्र देना खेल है क्या ?"(पृ. २२४) उपर्युक्त पंक्तियों का भाव भले प्रशंसात्मक लिया जाए, पर आगे देखिए : "इसीलिए भूलकर भी/कुल-परम्परा संस्कृति का सूत्रधार स्त्री को नहीं बनाना चाहिए।/और/गोपनीय कार्य के विषय में विचार-विमर्श-भूमिका/नहीं बताना चाहिए।” (पृ. २२४) कदाचित् ये पंक्तियाँ हमें पुन: नारी के सन्दर्भ में रूढ़िवादिता की ओर अतीत में धकेल देती हैं। स्त्री का चंचला स्वभाव परिस्थितिवश भी होता है और आतुरता नरों में भी होती है । परन्तु इसका आशय यह शाश्वत रूप से नहीं लिया जा सकता कि नारियों के पेट में बात नहीं पचती। रचना धर्म अपने आप में एक अलग कर्म है जिसे रचनाकार ने बखूबी निभाया है । इसमें वह कहीं-कहीं 'जिन'- सिद्धान्तों से जुड़ा है तो कहीं-कहीं कटा भी है : "हिंसा की हिंसा करना ही/अहिंसा की पूजा है प्रशंसा ।" (पृ. २३३) ____ इसमें शब्द हिंसा तो हो ही रही है भले ही हिंसा की ही क्यों न हो। और शब्द विचार से ही जन्मता है, उसी की अभिव्यक्ति है । प्रकृति की संगीतात्मकता को मुनिवर ने न केवल आत्मसात् किया है वरन् क़लम पर भी कमाल कर उतारा है : “काक-कोकिल-कपोतों में/चील-चिड़िया-चातक-चित में बाघ-भेड़-बाज-बकों में/सारंग-कुरंग-सिंह-अंग में खग-खरगोशों-खरों-खलों में/ललित-ललाम-लजील लताओं में।" (पृ. २४०) - रचना कर्म के पूर्व स्पष्ट बिम्ब का होना सृजन की पहली शर्त है और इसमें आचार्यश्री ने साफ़गोई बरती है : "मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं ।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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