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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 305 "कूप में एक बार और/ दयाविसुद्धो धम्मो'/ध्वनि गूंजती है और ध्वनि से ध्वनि, प्रतिध्वनि/निकलती हुई दीवारों से टकराती-टकराती ऊपर आ/उपाश्रम में लीन 'डूबती 'सी!'' (पृ. ८८) प्रथम खण्ड में कुम्भकार द्वारा माटी परिशोधन की प्रक्रिया का प्रस्तुतीकरण, वस्तुतः, गुरु-कृपा से साधक द्वारा आत्म-परिशोध की क्रिया को रेखांकित करना है। द्वितीय खण्ड शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं' का प्रारम्भ शुद्ध माटी में निर्मल जल मिलाने की क्रिया से प्रारम्भ होता है : "लो, अब शिल्पी/कुंकुम-सम मृदु माटी में/मात्रानुकूल मिलाता है छना निर्मल-जल ।/ नूतन प्राण फूंक रहा है/माटी के जीवन में करुणामय कण-कण में/...नव-नूतन परिवर्तन"!" (पृ. ८९) ___धर्म-दर्शन की मूलभूत मान्यताओं का रेखांकन विभिन्न पदों में यहाँ प्रस्तुत हुआ है । दया,क्षमा, प्रेम एवं मैत्री का विस्तार और क्रोध, प्रतिशोध आदि भावनाओं का शमन-परिष्कार निम्न पंक्तियों में द्रष्टव्य है : "खम्मामि खमंतु मे-/क्षमा करता हूँ सबको,/क्षमा चाहता हूँ सबसे, सबसे सदा-सहज बस/मैत्री रहे मेरी!/वैर किससे/क्यों और कब करूँ ? यहाँ कोई भी तो नहीं है/संसार-भर में मेरा वैरी!" (पृ. १०५) इसी भाँति : "क्रोध-भाव का शमन हो रहा है... प्रतिशोध-भाव का वमन हो रहा है।" (पृ. १०६) इस खण्ड में कवि का लोक से सम्बद्ध जीवनानुभव और तत्त्वदर्शन स्थान-स्थान पर अनायास ही उभर कर आया है । समसामयिक जीवन में मूल्यों का पतन सन्त कवि की पैनी दृष्टि से छुपा नहीं है : "वेतन वाले वतन की ओर/कम ध्यान दे पाते हैं/और चेतन वाले तन की ओर/कब ध्यान दे पाते हैं ?"(पृ. १२३) ___ यही नहीं, रचनाकार का विविध आयामी साहित्यिक दृष्टिकोण भी इस खण्ड में सुरूपायित हुआ है । साहित्य की परिभाषा, रस सम्बन्धी मान्यताएँ, ऋतुवर्णन आदि प्रस्तुत खण्ड की विशेषताएँ हैं। साहित्य का समसामयिक बोध से सम्पुष्ट होना, सर्व कल्याणकारी होना ही उसकी सार्थकता है। "हित से जो युक्त – समन्वित होता है/वह सहित माना है और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि/जिस के अवलोकन से सुख का समुद्भव – सम्पादन हो/सही साहित्य वही है ।" (पृ. १११) मर्मज्ञ कवि ने अपनी लेखनी से तत्त्व-दर्शन की उपपत्तियों को नितान्त सरल शब्दावली में प्रस्तुत किया है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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