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________________ 284 :: मूकमाटी-मीमांसा को काव्य की संज्ञा से अभिहित किया। अग्निपुराण, रुद्रट ने 'काव्यालंकार', भोज ने 'सरस्वतीकण्ठाभरण', हेमचन्द्र ने 'काव्यानुशासन' एवं जयदेव ने 'चन्द्रालोक' में भी कुछ इसी प्रकार की मान्यताओं को प्रतिष्ठापित किया। आधुनिक युग के रसवादी समीक्षक आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 'चिन्तामणि' में आत्मा की मुक्तावस्था और हृदय की मुक्तावस्था' को एवं महादेवीजी 'महादेवी के विवेचनात्मक गद्य' में 'मनुष्य को ही एक सजीव काव्य' स्वीकार करती हैं। इस प्रकार ‘सत्य काव्य का साध्य और सौन्दर्य उसका साधन' है। पाश्चात्य विद्वानों में जॉनसन के अनुसार 'छन्दोबद्ध रचना' को, काायल ने 'संगीतमय विचार,' शेली ने 'कल्पना की अभिव्यक्ति', हैलिट ने कल्पना और भावना की युति', वर्ड्सवर्थ ने 'प्रबल मनोवेगों का स्वच्छन्द प्रवाह, मैथ्यू आर्नाल्ड ने 'जीवन का विश्लेषण' एवं रशिका ने 'उदात्त मनोवेगों का सुन्दर क्षेत्र' ही काव्य माना है। निष्कर्षत: पाश्चात्य काव्य मर्मज्ञ काव्य के चार प्रमुख तत्त्व स्वीकार करते हैं, जो इस प्रकार हैं : (१) भाव तत्त्व (इमोशनल ऐलीमेण्ट) (२) दुद्धि तत्त्व (इन्टैलेक्च्युअल ऐलीमेण्ट) (३) कल्पना तत्त्व (ऐलीमेण्ट ऑफ इमेजिनेशन) (४) शैली तत्त्व (ऐलीमेण्ट ऑफ स्टायल) भारतीय काव्य विशारद काव्य को प्राय: दृश्य काव्य और श्रव्य काव्य-इन दो प्रमुख भेदों में बाँटते हैं । दृश्य काव्य के रूपक और उपरूपक अन्य दो और उपभेद हैं, जबकि श्रव्य काव्य के गद्य, पद्य और चम्पू-ये तीन प्रमुख उपभेद हैं। गद्य के अन्तर्गत कहानी, आख्यायिका, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, आलोचना, रेखाचित्र प्रभृति विधाएँ आ जाती हैं। छन्द रहित विधा गद्य' नाम से जानी जाती है। जबकि छन्दोबद्ध रचना को पद्य' कहते हैं। इसके दो प्रमुख भेद हैं - (१) प्रबन्ध काव्य (२) मुक्तक काव्य । प्रबन्ध काव्य में पद्य परस्पर सापेक्ष रहते हैं। इसके पद्य किसी कथासत्र अथवा क्रमबद्ध वर्णन से सम्बद्ध होते हैं। वे सम्बद्ध अथवा सामहिक रूप से अपने विषय का ज्ञान कराते हैं और रसोद्रेक में सक्षम होते हैं। आचार्य विश्वनाथ ने 'साहित्य दर्पण' में लिखा है कि 'मुक्तक काव्य' में प्रत्येक पद की स्वतन्त्र सत्ता रहती है और वह स्वतन्त्र रूप में अपना भाव व्यक्त करता है । विषय परिमाण की दृष्टि से प्रबन्ध काव्य के भी दो और भेद किए जाते हैं, वे हैं- (१) महाकाव्य और (२) खण्ड काव्य । ____महाकाव्य में जीवन की सर्वांगीण अभिव्यक्ति होती है । इसका विषय अत्यधिक विस्तृत एवं व्यापक होता है। कथावस्तु किसी महापुरुष से सम्बन्धित होती है । कथा के आधार पर जीवन के विविध अंगों पर प्रकाश डाला जाता है। संस्कृत में रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि महाकाव्य माने गए हैं। हिन्दी में रामचरितमानस, साकेत, कामायनी प्रभृति उल्लेख्य महाकाव्य हैं। महाकाव्य का सर्वप्रथम विवेचन भामह प्रणीत काव्यालंकार' (परि.१/१९-२३) में उपलब्ध होता है। गद्यपद्यमयी मिश्रित रचना को 'साहित्यदर्पण'कार (परि.६/३३६) ने 'चम्पू' नाम से अभिहित किया है। . पाश्चात्य विद्वानों ने व्यष्टि और समष्टि के आधार पर काव्य के दो भेद किए हैं : (१) विषयीगत (सब्जेक्टिव), (२) विषयगत (ऑब्जेक्टिव) अर्थात् जो काव्य कवि के व्यक्तित्व से, उसके निजी भावों और अनुभूतियों से सम्बन्ध रखते हैं, उन्हें विषयीगत भाव प्रधान अथवा स्वानुभूति निरूपक काव्य कहा जाता है । और जिन काव्यों में बाह्य जगत् के कार्य-कलापों तथा समाज अथवा जाति विशेष की मनोवृत्तियों की अभिव्यक्ति रहती है, उन्हें विषयगत अथवा बाह्यार्थ निरूपक काव्य माना जाता है। इस प्रकार प्रथम प्रकार के काव्य में प्रगीति या गीति काव्य (लिरिक) को तथा दूसरे प्रकार के काव्य में महाकाव्य
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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