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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 281 “प्रचार-प्रसार से दूर/प्रशस्त आचार-विचार वालों का जीवन ही समाजवाद है।" (पृ. ४६१) समाजवाद-समाजवाद चिल्लाने वालों की आस्था समाजवाद में नहीं-'सबसे आगे मैं, समाज बाद में" में है। ___सच्चा समाजवाद धनसंग्रह में नहीं, जनसंग्रह में है । लोभ के वशीभूत हो, जो अँधाधुन्ध संकलन किया है, उसका वितरण होना चाहिए । अन्यथा, अभाव में चोरी के भाव जागते हैं। चोरी मत करो' कहना ऊपरी सभ्यता का उपचार है । धर्म का नाटक है । दोषी चोर को जन्म देने में कारण धनिक हैं, चोर नहीं। मायाचारी मनुष्य कुत्ते की भाँति है जो पीठ पीछे से काटता है, बिना प्रयोजन भौंकता है और एक टुकड़े के लिए पूँछ हिलाता है । वह स्वतन्त्रता का मूल्य नहीं समझता : "पराधीनता-दीनता वह/श्वान को चुभती नहीं कभी, श्वान के गले में जंजीर भी/आभरण का रूप धारण करती है।" (पृ. १७०) स्वाभिमानी जीवन के लिए श्रम का जीवन में महत्त्व है । श्रम के बिना : "परिश्रम के बिना तुम/नवनीत का गोला निगलो भले ही, कभी पचेगा नहीं वह/प्रत्युत, जीवन को खतरा है !" (पृ. २१२) हिंसा का जन्म पहले विचारों में होता है, फिर आचरण में : "तीन सौ त्रेसठ मतों का उद्भव होता है/जो परस्पर एक-दूसरे के खून के प्यासे होते हैं/जिनका दर्शन सुलभ है/आज इस धरती पर !" (पृ. १६९) इसके समाधान के लिए अनेकान्त दृष्टि आवश्यक है, क्योंकि 'ही' एकान्त दृष्टि है तथा 'भी' अनेकान्त दृष्टि “ 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है 'भी' वस्तु के भीतरी-भाग को भी छूता है।" (पृ. १७३) यह भी' ही लोकतन्त्र की रीढ़ है । लोकतन्त्र में बहुमत-अल्पमत सभी को समान महत्त्व मिलना चाहिए : "लोक में लोकतन्त्र का नीड़/तब तक सुरक्षित रहेगा जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा। 'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं, सद्विचार सदाचार के बीच/ 'भी' में हैं 'ही' में नहीं।" (पृ. १७३) लेकिन लोकतन्त्र में बहुमत का महत्त्व है, जिसका परिणाम होता है अपात्र/अयोग्य की पूजा। बहुमत से चुना व्यक्ति या मत कितना ही दूषित या घातक क्यों न हो, वह पूजनीय हो जाता है । "प्राय: बहुमत का परिणाम/यही तो होता है,
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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