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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 273 फूल, लेखनी, रसना, ढोल, प्रकृति, पुरुष, काया, मति, श्रवणा, करुणा, हिमखण्ड, कुम्भ, श्वान, सिंह, धरती, बुद्धि, प्रभा, प्रभाकर, पृथ्वी, राहु, इन्द्र, बबूल की लकड़ी, अग्नि, मिट्टी का घड़ा, स्वर्ण कलश, आतंकवादी दल, मच्छर, पवन, बिजली, पौधा, अग्नि, स्पर्शा, रसना, सेठ, श्रीफल, गुरुदेव तथा सन्त आदि-आदि। ऐसे और भी अनेक पात्र हैं जो कथाक्रम को आगे बढ़ाते हैं। सभी पात्रों के कथनों का उदाहरण देना भी न सम्भव है और न ही यहाँ स्थान । मच्छर से हम-आप सभी परिचित हैं, मच्छर को कभी बोलता हुआ न देखा होगा, मगर यहाँ पढ़ कर अपनी जिज्ञासा शान्त कर लीजिए : "...सन्तों ने/पाणिग्रहण संस्कार को/धार्मिक संस्कृति का संरक्षक एवं उन्नायक माना है ।/परन्तु खेद है कि लोभी पापी मानव/पाणिग्रहण को भी/प्राण-ग्रहण का रूप देते हैं। प्राय: अनुचित रूप से/सेवकों से सेवा लेते/और वेतन का वितरण भी अनुचित ही।/ये अपने को बताते मनु की सन्तान !/महामना मानव !/देने का नाम सुनते ही इनके उदार हाथों में/पक्षाघात के लक्षण दिखने लगते हैं, फिर भी, एकाध बूंद के रूप में/जो कुछ दिया जाता/या देना पड़ता वह दुर्भावना के साथ ही।" (पृ. ३८६-३८७) मच्छर स्वयं समाज के उत्तरदायित्व को समझाता है । मच्छर के माध्यम से दहेज के लालची मनु की सन्तान को कवि ने फटकारा है। समाज में फैली हुई बुराइयों को दूर करने के लिए ललकारा है। 'मूकमाटी' में अन्तर्निहित विचार __ 'मूकमाटी' में जीवन के अच्छे-बुरे पहलुओं को अनेक आयामों से समझाया गया है। काव्यालंकारों के साथ सरल, सहज, मुहावरेदार भाषा की मधुरिमा से बनी चाशनी को चाटते हुए निम्नलिखित अनेक विचारों के दर्शन हम 'मूकमाटी' में कर सकेंगे : _ 'मूकमाटी' का रचयिता शब्द-शिल्पी है । प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण, अमूर्त पात्रों को मूर्त रूप देना, निर्जीव या जड़ पदार्थों को पात्र का स्वरूप देना, मनुष्येतर वस्तुओं का मानवीकरण, भारतीय संस्कृति के प्रतीक, सुन्दर प्राकृतिक चित्रण, तुकों का अनूठा सामंजस्य, आधुनिकता के अनेक दृश्य, श्रम पर बल, साधना की महत्ता, संस्कृत की उक्तियों का प्रयोग, मुहावरे-कहावतों का ज्यों-का-त्यों प्रयोग, संसार की व्यर्थताओं का निषेध, प्रगतिशील विचारधारा के तत्त्व, सूक्ष्म विश्लेषण, अप्रतिम बिम्ब योजना, साधना के स्तर की चर्चा, सूक्ष्म निरीक्षण, अहिंसा के सिद्धान्त को बल, आध्यात्मिक उन्नति पर योग-साधना द्वारा बल, मानवता के मूल्यों की उद्घोषणा, अनेक परिभाषाएँ, अलंकारों का प्रयोग- विशेषकर अनुप्रास, विज्ञान का आधुनिकतम ज्ञान, आयुर्वेदीय ज्ञान, साहित्य की व्याख्या जैसी अनेक व्याख्याएँ, शान्ति का सन्देश, शब्दों की व्याख्याएँ, लोक मंगल की भावना, खगोलीय जानकारी, आदर्श नारी चित्रण (नारी, महिला, अबला, कुमारी, स्त्री, सुता, दुहिता, अंगना शब्दों की व्याख्या द्वारा), प्रभाकर-बदली और सागर का रूपक, अवा के माध्यम से योग-साधना का चित्रण, सन्त पूजा एवं आतंकवाद आदि ऐसे विषय हैं जिन का वर्णन इस कृति में हम पाते हैं। यहाँ निश्चित रूप से इनके अतिरिक्त कई ऐसे विषय भी हैं, जो छूट गए हैं। इन सबका यदि एक
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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