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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 271 "मिटा दे अपनी हस्ती अगर कुछ मर्तबा चाहे कि दाना खाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है।" समाज-कल्याण के लिए स्वयं को मिटा देना पड़ता है। ऐसे मिटने में अमरता छिपी रहता है। एकोऽहं बहुस्याम् ।' सौभाग्य से 'मूकमाटी' के रचयिता स्वयं दिगम्बर जैन धर्म के सन्त हैं, जिन्होंने सांसारिकता का त्याग कर, 'बहुजन-हिताय' ही यह कवि-कर्म निर्लिप्त भाव से किया है। वे स्वयं कहते हैं कि अपने आपको मिटा देना ही प्रभु को पाना है । अपने आपको मिटाने का अर्थ है – अहं को मिटा देना । कवि की शब्द योजना में इस बात को देखें : “तूने जो/अपने आपको/पतित जाना है लघु-तम माना है/यह अपूर्व घटना/इसलिए है कि/तूने निश्चित-रूप से/प्रभु को,/गुरु-तम को/पहचाना है ! तेरी दूर-दृष्टि में/पावन-पूत का बिम्ब/बिम्बित हुआ अवश्य !" (पृ.९) वास्तव में सारा झगड़ा अहं के कारण ही उठ खड़ा होता है । आचार्य विद्यासागर ने उसी अहं को मारने की बात कही है। अहं और ईश्वर साथ-साथ नहीं चलते । कहा भी गया है : "जब मैं था, तब हरि नहीं, अब हरि हैं, मैं नाहिं।" ईश्वर तक पहुँचने के लिए तथा सांसारिक वैमनस्य मिटाने के लिए अहं का त्याग करना ही चाहिए। केवल अहं का ही नहीं, ईर्ष्या का भी त्याग करना आवश्यक है, यद्यपि वह है कठिन । "लो ! "इधर.!/अध-खुली कमलिनी/डूबते चाँद की चाँदनी को भी नहीं देखती/आँखें खोल कर ।/ईर्ष्या पर विजय प्राप्त करना सबके वश की बात नहीं।" (पृ.२) कवि ने काव्य का प्रारम्भ प्रकृति को लेकर ही किया है। उनके बिम्ब और चित्रण उत्कृष्ट हैं। देखिए उगते हुए सूरज का यह चित्र : “भानु की निद्रा टूट तो गई है/परन्तु अभी वह/लेटा है माँ की मार्दव-गोद में,/मुख पर अंचल ले कर/करवटें ले रहा है।" (पृ. १) इतना सुन्दर मानवीकरण सूर्य का शायद ही किसी कवि ने किया हो ! सान्ध्य वेला का चित्रण और भी अप्रतिम "न निशाकर है, न निशा/न दिवाकर है, न दिवा/अभी दिशायें भी अन्धी हैं; पर की नासा तक/इस गोपनीय वार्ता की गन्ध/"जा नहीं सकती! ऐसी स्थिति में/उनके मन में/कैसे जाग सकती है/"दुरभि-सन्धि वह!" (पृ.३) शब्द 'दुरभि-सन्धि' ने इन पंक्तियों के अर्थ को द्विगुणित कर दिया है । यह कवि की ही सूझ है । ऐसे ही प्रकृति से सम्बन्धित अनेक सुमधुर एवं उत्कृष्ट बिम्ब, चित्र 'मूकमाटी' में भरे पड़े हैं। पाठकगण जब इस कृति को स्वयं पढ़ेंगे तो वे चित्र उनके सामने आ जाएँगे।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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