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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 267 आगत- वर्तमान में लाती है / अबला' कहलाती है वह !" (पृ.२०३) ० " 'स्' यानी सम-शील संयम/'त्री' यानी तीन अर्थ हैं । धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में/पुरुष को कुशल-संयत बनाती है सो 'स्त्री' कहलाती है।” (पृ.२०५) इस प्रवाह में कुछ और चिन्तन सामने आता है : "आवश्यक अवसर पर/सज्जन-साधु पुरुषों को भी, आवेश-आवेग का आश्रय लेकर ही/कार्य करना पड़ता है। अन्यथा,/सज्जनता दूषित होती है/दुर्जनता पूजित होती है।” (पृ.२२५) और अन्तिम-चौथे खण्ड ‘अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' में विलक्षण आध्यात्मिकता-आधुनिकता का संगम है। विस्तृत कथा-फलक में अनेक प्रसंग समा गए हैं और कुम्भ के तपने-परखने से लेकर स्वर्ण कलश के विकल्प में उसके श्रद्धापूर्ण उपयोग के कथा-बिन्दुओं से आगे आध्यात्मिकता और आधुनिकता के सागर में पात्रों की कष्टपूर्णकष्टमुक्ति अभिव्यंजना शब्दातीत है और वर्तमान से कहीं-कहीं बहुत ही स्पष्ट रूप से जुड़ जाती है। अध्यात्मवाद से भौतिकवाद का सामना और समापन अत्यन्त रोचक और कहीं-कहीं रोमांचक हो जाता है । इस खण्ड में जीवन के कुछ गुणों की अत्यन्त सारगर्भित मीमांसा की गई है, जिनके कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं : 0 “अपनी कसौटी पर अपने को कसना/बहुत सरल है, पर सही-सही निर्णय लेना बहुत कठिन है,/क्योंकि, अपनी आँखों की लाली/अपने को नहीं दिखती है।" (पृ. २७६) "शिष्टों पर अनुग्रह करना/सहज-प्राप्त शक्ति का सदुपयोग करना है, धर्म है।/और,/दुष्टों का निग्रह नहीं करना शक्ति का दुरुपयोग करना है, अधर्म है।" (पृ.२७६-२७७) और अब हम इसी खण्ड में पहुँचते हैं, आधुनिक सन्दर्भ में गम्भीर विचारों के तारतम्य में, जिनमें व्यापारिक गुणदोष, आधुनिकता, पदलोलुपता, स्वास्थ्य, आतंकवाद और इन सब परेशानियों से जुड़े हुए अन्य अनेक विचारों के सागर से हमारा मन गुजरता है : 0 "भूख दो प्रकार की होती है/एक तन की, एक मन की । तन की तनिक है, प्राकृतिक भी,/मन की मन जाने कितना प्रमाण है उसका!/वैकारिक जो रही, वह भूख ही क्या, भूत है भयंकर!"(पृ. ३२८) "यह बात निश्चित है कि/मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है ।/अति-पोषण या अतिशोषण का भी यही परिणाम होता है।” (पृ. ४१८)
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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