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266 :: मूकमाटी-मीमांसा
और इन सबके बीच जीवन की सार्थकता के प्रति प्रश्न करते हुए ये विचार :
- "कौन किस के लिए-/धन जीवन के लिए/या जीवन धन के लिए ?
मूल्य किसका/तन का या वेतन का,/जड़ का या चेतन का ?" (पृ. १८० ) 0 “सोना तो तुलता है/सो अतुलनीय नहीं है/और
तुला कभी तुलती नहीं है/सो अतुलनीय रही है परमार्थ तुलता नहीं कभी/अर्थ की तुला में
अर्थ को तुला बनाना/अर्थशास्त्र का अर्थ ही नहीं जानना है ।" (पृ. १४२) विचार-प्रवाह की यह दिशा माटी के गागर पर कुछ शुभ संकेतों और संख्याओं के अंकन तक पहुँचती है। और तब आता है संख्याओं के आध्यात्मिक-वैचारिक विश्लेषण का यह क्रम :
० "संसार ९९ का चक्कर है/यह कहावत चरितार्थ होती है।" (पृ. १६७) ० “कुम्भ के कण्ठ पर/एक संख्या और अंकित है,/वह है ६३
जो पुराण-पुरुषों की/स्मृति दिलाती है हमें ।/इस की यह विशेषता है कि छह के मुख को/तीन देख रहा है/और तीन को सम्मुख दिख रहा छह !/एक-दूसरे के सुख-दुःख में/परस्पर भाग लेना सज्जनता की पहचान है, और/औरों के सुख को देख, जलना
औरों के दुःख को देख, खिलना/दुर्जनता का सही लक्षण है।" (पृ. १६८) और यदि यही ६३ का अंक बन जाता है ३६ का आंकड़ा तब :
"तीन और छह इन दोनों की दिशा/एक-दूसरे के विपरीत है। विचारों की विकृति ही/आचारों की प्रकृति को
उलटी करवट दिलाती है।/कलह-संघर्ष छिड़ जाता है परस्पर।" (पृ. १६८) अब हम पहुँचते हैं तीसरे खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप-प्रक्षालन' की विचारधारा में, जिसमें कुम्भकार द्वारा माटी की विकास-कथा के माध्यम से पुण्य कर्म करने से उत्पन्न श्रेयस्कर उपलब्धि का चित्रण किया गया है । इस खण्ड में सृजन और निर्माण की प्रक्रिया में आने वाले व्यवधानों को प्रभावशाली सांकेतिक शैली में अभिव्यक्त किया गया है। दृढ़प्रतिज्ञ प्रयास इस स्थिति में भी अनुकूलता उत्पन्न करता है । कुम्भ अपनी सम्पूर्णता की ओर बढ़ता जाता है।
इस खण्ड में विविध विचारक्रमों का, सांकेतिक घटनाओं का, पृथ्वी के विभिन्न जड़-अजड़ तत्त्वों का अनूठा मिश्रण है, और इनके बीच उभरता हुआ एक चित्र दृश्य विशेष रूप से आकर्षित करता है, जिसमें महिला वर्ग के विषय में अत्यन्त सम्मानित भाव व्यक्त है :
० "जो/मह यानी मंगलमय माहौल,/महोत्सव जीवन में लाती है
'महिला' कहलाती वह ।” (पृ.२०२) 0 "अनागत की आशाओं से/पूरी तरह हटाकर/ 'अब' यानी