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________________ 262 :: मूकमाटी-मीमांसा “निर्बल-जनों को सताने से नहीं,/बल-संबल दे बचाने से ही बलवानों का बल सार्थक होता है।” (पृ. २७२) 'स्व' एवं 'पर' का भेद जानना या उसे मिटाना ही ज्ञान है अथवा ज्ञान का फल है : "'स्व' को स्व के रूप में/'पर' को पर के रूप में जानना ही सही ज्ञान है, और . 'स्व' में रमण करना/सही ज्ञान का 'फल'।" (पृ. ३७५) कुम्भकार के द्वारा असीम दया का कार्य कराते हुए आचार्यजी लिखते हैं : "हाथ की ओट की ओर देखने से/दया का दर्शन होता है, मात्र चोट की ओर देखने से/निर्दयता उफनती-सी लगती है।" (पृ. १६५) 'मूकमाटी' राष्ट्रीय काव्य है । राष्ट्रीय जीवन के सभी तत्त्वों की व्याख्या इसमें हुई है । भारतीय समाज के उदात्त, अनुदात्त तत्त्वों को देखा, परखा गया है और उनको परिष्कृत कर सही दिशा देने का आदेश/निर्देश दिया गया भारतीय संस्कृति, सभ्यता की गौरव-गाथा इसमें वर्णित है। 'मूकमाटी' मूलत: दार्शनिक काव्य है । यह अध्यात्म काव्य है। इसमें अलौकिक प्रेम-कथा है । वह प्रेम, जो अपने आपसे प्रेम करना सिखाता है । यह आध्यात्मिक प्रेम-काव्य है । प्रेम-कथा में आत्मा-परमात्मा की विरह-गाथा वर्णित है। परन्तु यह सूफी सन्तों की विरह-व्यथा गाथा नहीं है। यह आध्यात्मिक विरह-गाथा है, जिसके बीज हमें कबीर के दुलहिन गावहु मंगलचार' और 'नैनों की करि कोठरी, पुतली पलंग बिछाय' में मिल जाते हैं। ___ काव्य तत्त्व के समस्त गुण इसमें अपनी परिपूर्ण अवस्था में प्राप्त होते हैं। इस प्रकार 'मूकमाटी' हिन्दी का आधुनिक महाकाव्य सिद्ध होता है, जिसमें प्रेम, भक्ति तथा अध्यात्म का चरम विकास हुआ है। परन्तु लौकिक तत्त्वों की उपेक्षा इसमें नहीं हुई है । लोक-परलोक दोनों को सुधारने का, दोनों को अपने सम्पूर्ण अर्थ में अनुभव करने का सन्देश इसमें दिया गया है। पृष्ठ १९०-१९१ लो! प्रवर प्रखरतर... --- जलधि को बार बार भर कर
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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