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260 :: मूकमाटी-मीमांसा :
स्थिति पर विचार नहीं करते। पहले अपने आपसे प्रेम करो। अपने स्वत्व से प्यार करो। अपने निज रूप को पहचानकर उस पर दया करो । स्व को याद करो और दया करो । अपने आप को पहचानने का यह पहला कदम होता है।
"गद का अर्थ है रोग/हा का अर्थ है हारक मैं सबके रोगों का हन्ता बन/बस,
और कुछ वाँछा नहीं/गद-हा“गदहा!" (पृ. ४०) निकृष्ट जानवर 'गदहा' शब्द से आचार्यजी ने महान् अर्थ निकाला है। गदहा शब्द रोगों का निवारण करनेवाला है, जीवन के सारे दोष मिटानेवाला है। लौकिक जगत् में जीव गदहा बनकर पापों को ढोता फिरता है। धीरे-धीरे उसे पापों के भार से मुक्त होना है । फल ही रोग बनकर सताते हैं । अतः सभी रोगों से भी छुटकारा पाना है। मन की व्याख्या करते हुए आचार्यजी ने लिखा है :
"मन की छाँव में ही/मान पनपता है/मन का माथा नमता नहीं न-'मन' हो, तब कहीं/नमन हो 'समण' को
इसलिए मन यही कहता है सदा-/नम न ! नम न !! नम न !!!" (पृ. ९७) इसमें समण शब्द 'श्रमण' शब्द की विकृति है । मन में अभिमान नहीं हो तो श्रमण को नमन करता है । अर्थात् सात्त्विकता की ओर प्रवृत्त होता है । नमन शब्द को आचार्यजी ने तोड़-मरोड़ कर चमत्कार पैदा किया है।
आचार्यजी ने अपने काव्य में तत्त्व चिन्तन की गरिमा के साथ काव्य में तत्त्वों को चरम सीमा पर पहुँचाया है। साधारण शब्दों में तात्त्विक अर्थ भर दिया है । शब्दों का खिलवाड़ देखिए :
० "जब हवा काम नहीं करती/तब दवा काम करती है,
और/जब दवा काम नहीं करती/तब दुआ काम करती है।" (पृ. २४१) 0 "मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं।
और/मैं तथाकार बनना चाहता हूँ/कथाकार नहीं।" (पृ. २४५)
“मंगलमय प्रांगण में/दंगल क्यों हो रहा, प्रभो ?" (पृ. २१४) इस प्रश्न का उत्तर कहाँ है ? आचार्यजी के हाथों से शब्द कोमल बन गए हैं। उदाहरणार्थ-गरलिम, धवलिम आदि ।
_आचार्यश्री विद्यासागरजी ने जीवन में विज्ञान का महत्त्व प्रकट किया है। इसके सहारे दैवकार्य समझकर मानो शत्रु दमन, दुष्ट दलन करने का आदेश दिया है।
"इन्द्र ने अमोघ अस्त्र चलाया/तो"तुम/रामबाण से काम लो ! पीछे हटने का मत नाम लो/ईंट का जवाब पत्थर से दो !
विलम्ब नहीं, अविलम्ब/ओला-वृष्टि करो"उपलवर्षा !" (पृ.२४८) आपने आर्यभट्ट, रोहिणी आदि प्रक्षेपास्त्रों की चर्चा भी की है। इसमें 'स्टार-वार' का प्रसंग उठाया है और अन्त में वैज्ञानिक, भौतिक तत्त्वों को नकारा है, उसकी सीमा निर्धारित की है । सत्य और अहिंसा के द्वारा शत्रु को जीतने का सन्देश दिया है।
"जब सुई से काम चल सकता है/तलवार का प्रहार क्यों ?
और