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________________ 244 :: मूकमाटी-मीमांसा अपाय की अनुपस्थिति भी अनिवार्य है। और वह अनायास नहीं, प्रयास-साध्य है।" (पृ. २३०) महापुरुषों का स्वभाव विचित्र ही होता है । प्रकाश प्रदान करना उनकी स्वाभाविक वृत्ति है : "महापुरुष प्रकाश में नहीं आते/आना भी नहीं चाहते,/प्रकाश-प्रदान में ही उन्हें रस आता है। यह बात निराली है,कि/प्रकाश सब को प्रकाशित करेगा ही स्व हो या पर, 'प्रकाश्य' भर को!" (पृ. २४५) इन्द्रधनुष के माध्यम से कवि ने अपने काव्य प्रयोजन को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत किया है : "मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं। और/मैं तथाकार बनना चाहता हूँ/कथाकार नहीं। इस लेखनी की भी यही भावना हैकृति रहे, संस्कृति रहे/आगामी असीम काल तक जागृत"जीवित "अजित !" (पृ. २४५) विज्ञान और आस्था का सुन्दर विश्लेषण प्रस्तुत हुआ है : "एक विज्ञान है/जिसकी आजीविका तर्कणा है, एक आस्था है/जिसे आजीविका की चिन्ता नहीं, एक अधर में लटका है/उसे आधार नहीं पैर टिकाने, एक को धरती की शरण मिली है/यही कारण है, ऊपर वाले के पास केवल दिमाग है, चरण नहीं!" (पृ. २४९) 'प्रश्न' और 'उत्तर' की मीमांसा भी दर्शनीय है : "प्रश्न का उत्तर नीचे ही मिलता है/ऊपर कदापि नहीं.. उत्तर में विराम है, शान्ति अनन्त ।/प्रश्न सदा आकुल रहता है उत्तर के अनन्तर प्रश्न ही नहीं उठता,/प्रश्न का जीवन-अन्त सिन्धु में बिन्दु विलीन ज्यों..!" (पृ. २५०) साधना का लक्ष्य क्या है- इसे कवि ने मननीय तथा स्पृहणीय शैली में प्रस्तुत किया है : “साधक की अन्तर दृष्टि में/निरन्तर साधना की यात्रा/भेद से अभेद की ओर वेद से अवेद की ओर/बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए/अन्यथा, वह यात्रा नाम की है/यात्रा की शुरूआत अभी नहीं हुई है ।" (पृ. २६७) चतुर्थ खण्ड अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख' में वर्णित गुण और दोष के विषय में कवि के विचार मननीय हैं: "मेरे दोषों को जलाना ही/मुझे जिलाना है/स्व-पर दोषों को जलाना
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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