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मूकमाटी-मीमांसा :: 233
सशक्त बन पड़ा है। उपलब्ध बिम्बों की चर्चा निम्नांकित है :
१. स्थितिशील (स्थिर बिम्ब ) : ये बिम्ब मात्र चित्रबोध कराते हैं । मुक्ताराशि को छूते ही राज- मण्डली की स्थिति स्थिर बिम्ब उभारती है :
"यह सब देख कर / भयभीत हुआ राजा का मन भी,
उस का मुख खुला नहीं/ मुख पर ताला पड़ गया हो कहीं।” (पृ. २१३)
२. गतिशील बिम्ब : ये क्रिया - व्यापार से सम्बन्धित होते हैं । यह काव्य में गतिशीलता एवं क्रियाशीलता को परिलक्षित करते हैं। हाथियों का झुण्ड परिवार को बचाने के लिए उद्यत होते ही उन हाथियों का गर्जन गतिशील बिम्ब को उभारता है :
“गजगण की गर्जना से / गगनांगन गूँज उठा, / धरती की धृति हिल उठी, पर्वत-श्रेणी परिसर को भी / परिश्रम का अनुभव हुआ, / नि:संग उड़नेवाले पंछी दिग्भ्रमित भयातुर हो,/ दूसरों के घोंसलों में जा घुसे।” (पृ. ४२९)
३. भाव बिम्ब : इसमें जीवन की सूक्ष्म भावनाओं को बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है । काव्य के प्रथम अध्याय में सरिता तट का प्राकृतिक दृश्य भाव बिम्ब को उभारता है :
" और देखो ना ! / तृण- बिन्दुओं के मिष / उल्लासवती सरिता- सी धरती के कोमल केन्द्र में / करुणा की उमड़न है,
और उसके / अंग-अंग / एक अपूर्व पुलकन ले / डूब रहे हैं स्वाभाविक नर्तन में!" (पृ. २०)
४. घ्राण बिम्ब : इनका प्रयोग अपेक्षाकृत कम मिलता है। अवा में धूम लगा हुआ है। इस धूम में कुम्भ का दम घुट रहा है । यह घ्राण बिम्ब के माध्यम से प्रस्तुत है :
" बाहर से भीतर घुसने वाला धूम / प्राणों को बाहर निकलने नहीं देता,
नाक की नाड़ी नहीं - सी रही कुम्भ की / धूम्र की तेज गन्ध से ।” (पृ. २७९ )
५. वर्ण बिम्ब : वर्ण संवेद्यता का बिम्ब 'मूकमाटी' में उभर आया है। सेठ पीताम्बर धारण किए हुए है। यह वर्ण म्
देखिए :
" मन्द - मन्द बहते पवन के प्रभाव से / पीताम्बर लहरदार हो रहा है,
जिन लहरों में / कुम्भ की नीलम - छवि तैरती-सी / सो पीताम्बर की पीलिमा अच्छी-लगती नीलिमा को / पीने हेतु उतावली करती है।” (पृ. ३४०)
अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं । यह परम्परा प्राचीन है । आज अप्रस्तुत के नए प्रयोग मिलते हैं । 'मूकमाटी' में पारम्परिक अलंकारों के साथ पाश्चात्य अलंकार भी आए हुए हैं। नीचे कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं : १. अनुप्रास अलंकार :
"सदा सरकती सरिताओं की / सरवर सरसिज सुषमा की ।" (पृ. २२३ )