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232 :: मूकमाटी-मीमांसा
आचार्य विद्यासागरजी ने काव्य-रचना के दौरान अपनी मेधा में उपजी अनेक महान् उक्तियों का नियोजन भी 'मूकमाटी' में किया है :
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" कुम्भ ने कहा विस्मय के स्वर में - / क्या अग्नि परीक्षा के बाद भी कोई परीक्षा - परख शेष है, अभी ? / करो, करो परीक्षा !/ पर को परख रहे हो अपने को तो परखो जरा !/ परीक्षा लो अपनी अब !" (पृ. ३०३)
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“काँटे से ही काँटा निकाला जाता है ।" (पृ. २५६ ) "आचरण के सामने आते ही/प्राय: चरण थम जाते हैं / और
आवरण के सामने आते ही / प्राय: नयन नम जाते हैं । " (पृ. ४६२) " धन का मितव्यय करो, अतिव्यय नहीं ।" (पृ. ४१४) "माटी, पानी और हवा / सौ रोगों की एक दवा । " (पृ. ३९९ ) " सकल-कलाओं का प्रयोजन बना है / केवल
अर्थ का आकलन-संकलन ।” (पृ.३९६)
'मूकमाटी' की पात्र परिकल्पना आधुनिक है। निम्नवर्गीय पात्रों को लेकर उनके माध्यम से धर्म, दर्शन और अध्यात्म की जिज्ञासाओं के समाधान प्रस्तुत किए हैं। 'मूकमाटी' में माटी, कुम्भकार दो पात्र निम्न वर्ग के हैं। ये पात्र अपने कर्मों के द्वारा उत्तम वर्ग में प्रवेश करते हैं। यह आधुनिक काल की विशेषता है कि उत्तमवर्गीय पात्र भी अपने दीन कर्म के कारण निम्न वर्ग में और निम्नवर्गीय पात्र अपने श्रेष्ठ कर्म के कारण उत्तम वर्ग में आ जाते हैं। उदाहरण के लिए माटी स्वर्ण कलश की निन्दा करते हुए कहती है।
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"तुम स्वर्ण हो / उबलते हो झट से / माटी स्वर्ण नहीं है / पर
स्वर्ण को उगलती अवश्य, / तुम माटी के उगाल हो !” (पृ. ३६४-३६५)
अभिव्यंजना शिल्प के अन्तर्गत 'मूकमाटी' में प्रतीक विधान, बिम्ब-योजना, अलंकार - विधान, भाषिक एवं छन्द-विधान का प्रयोग हुआ है। धर्म, दर्शन को इस अत्याधुनिक महाकाव्य में उपर्युक्त अंगों को अपने ढंग से अपनाया गया है । पौराणिक प्रतीकों के साथ-साथ सामाजिक विभिन्न प्रतीकों का प्रयोग हुआ है ।
स्वर्णको पूँजीवाद का प्रतीक बताते हुए और मूक माटी - धरती को सर्वहारा शोषित वर्ग के प्रतीक के रूप • प्रस्तुत किया गया है।
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" परतन्त्र जीवन की आधार - शिला हो तुम, / पूँजीवाद के अभेद्य
दुर्गम किला हो तुम / और / अशान्ति के अन्तहीन सिलसिला !” (पृ. ३६६)
'कान्तिहीन बादल' निराशा के प्रतीक हैं । 'मशाल' को अपव्ययी असंयमी का प्रतीक बताते हुए दीपक को मितव्ययी, संयमशील बताते हैं :
" मशाल अपव्ययी भी है, / बार-बार तेल डालना पड़ता है /.. आदर्श गृहस्थ- सम मितव्ययी है दीपक | / कितना नियमित, कितना निरीह !" (पृ. ३६८-३६९)
काव्य में बिम्बों का महत्त्वपूर्ण स्थान है । बिम्बात्मक शैली के कारण 'मूकमाटी' का अभिव्यंजना पक्ष