________________
मूकमाटी-मीमांसा :: 227
भेजा है उपाश्रम की सेवा में,/और वह आश्रम के अंग-अंग को/आँगन को चूमती-सी...
सेवानिरत-धूप.!" (पृ. ७९) कवि ने धूप को सूर्य की अंगना सम्बोधित कर एक नए, किन्तु अत्यन्त मौलिक रिश्ते का उद्घोष किया है, जो अन्यत्र पढ़ने को नहीं मिला। इस स्थल पर अंगना के बाद आँगन शब्द का प्रयोग कर भाषाई चमत्कार को बल दिया गया है।
पाठक को एक मिठास और मिली है उक्त पंक्तियों से, वह यह कि किरणों का सहज ही आश्रम में आना एक मायने रखता है, पर उनका आश्रम में आकर आश्रम का अंग-अंग चूमना, विशेष मायने की संरचना करता है । यही है चित्रण का चमत्कार।
___ इसी तरह एक अन्य उदाहरण है-मछली का पानी में जन्म लेना प्राकृतिक है, पर आचार्यश्री अपने चिन्तन से उस प्राकृतिक घटना के भीतर छुपी हुई स्थिति को प्रकट करने में साफल्य पाते हैं, जब वे लिखते हैं :
"जल में जनम लेकर भी/जलती रही यह मछली।" (पृ. ८५) यह मछली जैसे जीवधारियों का सत्य है जिसे आचार्यश्री ही समझ-सुन सके हैं।
'जल में जले मछली' यह शब्दोपयोग सामान्य नहीं है । यह प्रतीति और वह अनुभूति दार्शनिकता से जन्मी लगती है । महाकवि मात्र कल्पनाशीलता के विमान पर नहीं चलते, वे दार्शनिकता के राजपथ पर भी चले हैं काव्य लिखते समय।
प्रकृति के महत्त्वपूर्ण चित्रण से लबरेज महाकाव्य का प्रथम खण्ड समृद्ध बनाया गया है, जबकि द्वितीय खण्ड में वह तनिक भी आवश्यक नहीं माना गया है, फलत: प्रकृति की कोई लघु दृश्यावली दृष्टि में नहीं आती। किन्तु खण्ड तीन में रचनाकर का चिन्तन पुन: प्रकृति का पावन स्पर्श करता है, जब वे बादलों से बरसे हुए पानी को धरती पर गिरता हुआ देखते हैं और फिर वही पानी विशाल राशि के साथ धरती का सब कुछ बहाता हुआ अपने साथ समुद्र में ले जाता है । वे उस दृश्य को शब्द देते हैं :
“वसुधा की सारी सुधा/सागर में जा एकत्र होती।" (पृ. १९१) इन पंक्तियों में वे धरती पर पानी के साथ बहे हुए अनेक पदार्थों को 'सुधा' का सम्बोधन देकर अपने कवि का स्तर बहुत ऊँचा करने में भी साफल्य पा सके हैं।
___ धरती की सम्पदा को आदर देने के निमित्त ही उन्होंने 'सुधा' शब्द का श्रेष्ठ उपयोग किया है। यहाँ वर्तमान के विख्यात कविगण काफी पीछे रह जाते हैं जिनने लिखा है कि धरती सोना और हीरा-मोती उगलती है।
____ अब मैं जो उदाहरण देने जा रहा हूँ वह कवि की सुकुमार भावनाओं का सुन्दर परिचय तो देता ही है, उसे प्रकृति की घटनाओं का ज्ञाता भी सिद्ध करता है । आकाश में तीन बदलियों को उड़ते देख वे किस कदर प्रकृति में समाहित हो जाते हैं, यह समझने-विचारने की बात है :
"गजगामिनी भ्रम-भामिनी/दुबली-पतली कटि वाली गगन की गली में अबला-सी/तीन बदली निकल पड़ी हैं। दधि-धवला साड़ी पहने/पहली वाली बदली वह ऊपर से/साधनारत साध्वी-सी लगती है। रति-पति-प्रतिकूला-मतिवाली/पति-मति-अनुकूला गतिवाली।" (पृ. १९९)