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मूकमाटी-मीमांसा :: 221
आजीविका से । कलियुग में किसी का, कुछ का अर्थ नहीं।' सन्दर्भानुकूल भू की महिमा, नारी की महिमा का वर्णन हुआ है। विज्ञान को भी नहीं छोड़ा है। सोना सो गया अब, लोहा से लोहा लोहा" | आज माटी के बर्तनों के स्थान पर सोना-रजत के लोटे-प्याले-प्यालियाँ बेचकर धनी बनते हैं। जेल में भी अपराधियों के हाथ-पैरों में इस्पात की ही हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ होती हैं । युवक-युवतियों के हाथों में भी इस्पात के ही कड़े मिलते हैं । यही है विज्ञान का विकास ? चिकित्सा के क्षेत्र में, भोजन-पान के क्षेत्र में ऐसा ही कुछ घट रहा है । स्वादिष्ट-बलवर्द्धक दुग्ध का सेवन रोग के कारण बनने वाले हैं। अनियन्त्रित जीवन जीने वालों को, सुख-भोग के पीछे पागल बनकर भागने वालों को कुछ नैतिक उपदेश हैं। अतिव्यय और अपव्यय को छोड़कर मितव्ययी बनने का मशविरा देते हैं।
कुम्भ ने स्वर्ण-कलश का उपहास किया तो उसके मन में बदले का भाव भर जाता है और वह सेठ को परिवार सहित समाप्त करने का षड़यन्त्र रचता है। दिन और समय निश्चित होते हैं। आतंकवाद आमन्त्रित है। देखिए, यह हाल अभी हमारे सम्मुख विराजमान है । हमारे पावन, महान् भारत वर्ष में आज बैर भाव से उत्पन्न आतंकवाद का ताण्डव नर्तन हो रहा है । इन सबका कारण है अपने को न पहचानना, जीवन का अपना उद्देश्य न पहचानना, पुरुषार्थ का दुरुपयोग करना, आध्यात्मिकता छोड़कर लौकिक सुख-भोग में डूब मरने की अवांछित अभिलाषा; नहीं तो हमारे देश की स्थिति इतनी बुरी, इतनी दयनीय नहीं हो सकती थी। मान को टीस पहुँचने से, अति शोषण से, अति पोषण से यही हाल हुआ है। जीवन का लक्ष्य शोध के बदले आज प्रतिशोध बना है, बदले का भाव पनपा है । अज्ञानता का, दूरदर्शिता के अभाव का यही परिणाम है । काश, लोग सही जान पाते । सोना-मिट्टी होने के भेद-भाव को छोड़कर समता का भाव पैदा करने की सलाह देते हैं।
हाँ, हाँ ! स्वर्ण-कलश ने बदले का भाव ठान लिया है और सेठ सहित पूरे परिवार पर आक्रमण करना निश्चित किया है। निर्धारित समय के पहले ही अनर्थ के घटने की सम्भावना से अवगत होकर अड़ोस-पड़ोस की निरपराध जनता को बचाने हेतु कुम्भ ने सेठ से परिवार सहित पलायन करने को कहा । आजकल जो हो रहा है, उसकी यह सही अभिव्यक्ति है। ___पलायन करने वाले परिवार से आतंकवाद के दल का यह पूछना कि 'कहाँ भागोगे, कब तक भागोगे, काया का राग छोड़ दो अब । अरे पातको, ठहरो ! पाप का फल पाना है तुम्हें, धर्म का चोला पहनकर अधर्म का धन छुपाने वालो ! सही-सही बताओ, कितना धन लूटा तुमने, कितने जीवन टूटे तुम से'- यह सामाजिकता की सच्ची अभिव्यक्ति है। आधुनिक समाज में यह अत्याचार अभी हो रहा है। उससे निरीह, आम जनता की रक्षा के लिए आतंकदलों की पुकार की आवाज़ अभी हमारे कानों में गूंज रही है। 'दण्ड-विधान से सम्बन्धित कवि का अपना मत है कि उद्दण्डता दूर करने हेतु दण्ड -संहिता होती है । दण्डों में अन्तिम दण्ड प्राणदण्ड होता है । प्राणदण्ड से औरों को तो शिक्षा मिलती है, परन्तु जिसे दण्ड दिया जा रहा है, उसकी उन्नति का अवसर ही समाप्त होता है। क्रूर अपराधी को क्रूरता से दण्डित करना भी एक अपराध है।' कवि की कितनी सही दण्डनीति है !
___ आज समाज में पद-लिप्सा की जो भावना खतरनाक स्थिति तक पहुंच गई है, उसकी ओर भी कवि ने संकेत किया है- ‘पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु पर को पद-दलित करते हैं, पाप पाखण्ड करते हैं।'
वेगवती नदी की गम्भीरता और गुरुता से भयभीत होकर परिवार जन लौट चलने को उद्यत होता है तो कुम्भ का कहना है कि अभी लौटना नहीं है, क्योंकि अभी आतंकवाद गया नहीं। 'जब तक आतंकवाद जीवित है तब तक यह धरती शान्ति का श्वास नहीं ले सकती' – आधुनिक समाज का यही हाल है।
आतंकवाद का परिवार के प्रति इस कथन में कि प्रचार-प्रसार से दूर, प्रशस्त आचार-विचार वालों का जीवन