SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 305
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 219 स्त्री-समाज को आगे बढ़कर प्रगति प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है। वर्तमान समाज में हो रहे अत्याचारों, अनाचारों की ओर भी इशारा है । दोष-बैर युक्त समाज की ओर संकेत है। प्रकृति के प्रत्येक अंगों के माध्यम से सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति हुई है। जैसे जलधर, मुक्ता, प्रभाकर, सागर इत्यादि के माध्यम से विशेष अभिव्यंजना हुई है । ओलों का वर्षण, बादलों का आगमन, बिजली की कौंध आदि सभी प्रकार के संघर्षों से घिरी हुई है आत्मा यानी साधारण मनुष्य । संघर्षों का उत्कर्षण-प्रकर्षण होते रहते हैं। लक्ष्य की ओर बढ़ते वक्त इस प्रकार की विघ्न-बाधाओं का टूट पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि हमारी परीक्षा ली जा रही है। हमें उसमें विजयी होना है। उसके लिए धैर्य से, बहादुरी से काम करना अवश्यम्भावी है । ओलों के पड़ने से भी कुम्भ का नाश नहीं होता है। यह तो एक प्रेरणा है। जो लक्ष्य-प्राप्ति के लिए तन-मन को पाक एवं पक्का बनाकर प्रयाण करता है, उसका नाश असम्भव है । प्रतिकूलता से डरकर वह पीछे नहीं हटेगा । त्याग-तपस्या से, दृढ़ निष्ठा से वह आगे बढ़ेगा। ___माटी की मूक वेदना है । वह स्वयं सर्वसहा है। सर्वसहा माटी मूक होकर वेदना में तड़पती है। फिर भी वह पहने कपड़ों को नहीं फाड़ रही है, हाथ-पैर नहीं पछाड़ रही है। धरा पर मुख-मुद्रा को विकृत कर आक्रोश के साथ क्रन्दन नहीं कर रही है । इसी कारण उसमें दु:ख के अभाव का निर्णय लेना, सही निर्णय नहीं माना जा सकता । यहाँ दु:ख का अभिव्यक्तीकरण नहीं है, किन्तु दुःख की घटाओं से आच्छन्न है अन्दर का प्रकाश । यह हाल भूकणों का ही नहीं है, ऐसे अनेक जीवित भू-कण रूपी आत्माएँ मूक वेदना स्वयं भोग रही हैं। ईश्वर उनकी परीक्षा कर रहे हैं। लेकिन अति परीक्षा पात्र को विचलित करेगी। पाथेय के प्रति प्रीति घट जाएगी। धैर्य, साहस कम हो जाएँगे, दरार की सम्भावना होगी, परिणाम होगा अकाल मृत्यु । माटी ने सबको स्वयं सहा और अपनी यात्रा की निरन्तरता में तल्लीन रही। आगे जाकर उसे परिपूर्ण विकास प्राप्त करना है । अभी तो अग्नि-परीक्षा स्वागतार्थ सामने खड़ी है । जलांश सूख गया तो अग्नि की कठोर परीक्षा। हाँ, हाँ ! यही तो मानव-जीवन का भी हाल है । मूकमाटी ही नहीं, ऐसे अनेक असहाय जन पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं। उनकी परीक्षा ली जा रही है। कुम्भ की परीक्षा हो रही है। उसे अवा में तपाना है यानी कि कुम्भ को पक्का बनाना है, पाक बनाना है। उसके लिए लकड़ियों का सहयोग चाहिए। नीम, देवदारु, बबूल की लकड़ियाँ हैं। इनमें बबूल की लकड़ियाँ कुछ कड़ी हैं जिससे सज़ा दी जाती है। लेकिन सज़ा पाने वाले अपराधी नहीं, निरपराधी हैं। इस सन्दर्भ में यह विचारणीय है कि आजकल की सामाजिक नीति भी खोखली है । प्रायः यहाँ अपराधी नहीं, निरपराधी ही पीटा जाता है । उनको पीटतेपीटते सज़ा देने वाले अधिकारी टूटते हैं। यह कभी गणतन्त्र नहीं होगा। इसकी ओर कवि का संकेत है । कवि की राय में: "कभी-कभी हम बनाई जाती/कड़ी से और कड़ी छड़ी अपराधियों की पिटाई के लिए।/प्राय: अपराधी-जन बच जाते निरपराध ही पिट जाते,/और उन्हें/पीटते-पीटते टूटती हम । इसे हम गणतन्त्र कैसे कहें ?/यह तो शुद्ध 'धनतन्त्र' है/या । मनमाना 'तन्त्र' है!" (पृ. २७१) यहाँ गणतन्त्र के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे हैं। पाखण्ड, घूसखोरी, रिश्वतखोरी आदि आम, असहाय,
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy