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________________ 218 :: मूकमाटी-मीमांसा छह के मुख को तीन, तीन को छह कहकर माया का वर्णन किया है । सन्त कवि ने उसके माध्यम से नैतिक उपदेश दिया है । इसमें वर्तमान समाज की दशा का चित्रण हुआ है। तीन और छह, इन दोनों की दिशाएँ एक-दूसरे के विपरीत हैं । विचारों की प्रकृति ही आचारों की प्रकृति को उलटी करवट दिलाती है । कलह-संघर्ष छिड़ जाता है परस्पर । फिर क्या बताना । छत्तीस के आगे एक और तीन की संख्या जुड़ जाती है, कुल मिलाकर तीन सौ त्रैसठ मतों का उद्भव होता है। जो परस्पर एक-दूसरे के खून के प्यासे होते हैं, जिनके दर्शन आज इस धरती पर सुलभ हैं। ___ वर्तमान समाज में जो कुछ घट रहा है वह इन्हीं भिन्न-भिन्न मत-मतान्तरों का परिणाम है । एकता का अभाव, मानवता का अभाव - ऐसी स्थिति के ये ही हेतु हैं। भाई-भाई खून के प्यासे होकर डण्डा मारते हैं, बम फेंकना, आग लगाना, निर्दोषों की हत्या करना, ये सब कुटिलता की वजह से होते हैं। कुम्भ का निर्माण हुआ। कुम्भ पर हुआ वह सिंह और श्वान का चित्र देखिए। उनके माध्यम से कवि ने अधमजनों को चेतावनी देने का प्रयास किया है । श्वान पराधीनता का प्रतीक है तो सिंह स्वतन्त्रता का । अपनी नीचता, गुलामी के जंजीरों को तोड़कर ऊपर उठने का प्रयास करना चाहिए। मायाचार के वशीभूत हैं साधारण लोग । लेकिन वीर-विवेकी जन कभी अपनी पराधीनता, नीचता, गुलामी पसन्द न करेंगे। उनके विरुद्ध आवाज़ उठाना हमारा दायित्व है। नीचजनों का उद्धार हमारा कर्तव्य है । श्वान की तरह आपस में अपनी ही जाति लड़ रही है, क्योंकि वे पागल हैं, मदान्ध हैं। श्वान इतना नीच है कि मलिनता में ही लिपटा रहता है। कवि ने लोकतन्त्र को भी नहीं छोड़ा है। शब्दों की सार्थकता बताई गई है। कुम्भकार कुम्भ को सुखाने उसे तपी हुई खुली धरती पर रखता है। कवि की राय में : "उच्च उच्च ही रहता/नीच नीच ही रहता/ऐसी मेरी धारणा नहीं है, नीच को ऊपर उठाया जा सकता है,/उचितानुचित सम्पर्क से सब में परिवर्तन सम्भव है।” (पृ. ३५७) यहाँ जल अज्ञान का प्रतीक है। उस जल रूपी अज्ञान को ज्ञान रूपी धूप में सुखाना है । तपन की प्रक्रिया द्वारा माया का विवेचन हुआ है। भौतिक जीवन को सारहीन बताया गया है। तपन से बहुत कुछ अनुभव-ज्ञान होता है । मोक्ष की ओर आत्मा का निरन्तर प्रयाण होता रहता है यानी कि आम आदमी अपनी नीचता से उन्नति की ओर प्रयत्नशील होता है। काव्य के तृतीय खण्ड में पुण्य का पालन करते हुए पाप-प्रक्षालन करने को उद्यत होने वाली आत्मा का प्रयास है। हाँ, दीन-हीन आदमी का प्रयास । इस खण्ड में अच्छे-बुरे कर्मों का विवेचन हुआ है। सामाजिक बातों का उद्घाटन हुआ है । स्त्री समाज द्वारा पृथ्वी पर प्रलय का संकेत : "क्या सदय-हृदय भी आज/प्रलय का प्यासा बन गया ? क्या तन-संरक्षण हेतु/धर्म ही बेचा जा रहा है ? क्या धन-संवर्धन हेतु/शर्म ही बेची जा रही है ?" (पृ. २०१) और : "प्राय: पुरुषों से बाध्य होकर ही/कुपथ पर चलना पड़ता है स्त्रियों को परन्तु,/कुपथ-सुपथ की परख करने में/प्रतिष्ठा पाई है स्त्री-समाज ने।" (पृ. २०१-२०२) नारी, स्त्री, कुमारी आदि शब्दों की सार्थकता बताकर समाज में नारी की महत्ता की ओर संकेत किया है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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