SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 217 आचार्यश्री विद्यासागरजी व्यावहारिक भाषा में इस सूत्र की व्याख्या करते हैं : “आना, जाना, लगा हुआ है/आना यानी जनन-उत्पाद है जाना यानी मरण-व्यय है/लगा हुआ यानी स्थिर-धौव्य है/और है यानी चिर-सत्/यही सत्य है यही तथ्य !" (पृ. १८५) मछली की सारी उलझन माँ माटी के उपदेश से सुलझ गयी । आत्मा अपने उद्धार के प्रयाण में जब प्रयत्नशील रहती है तब शंकाएँ उद्भूत हों- यह स्वाभाविक है । उन्हें सही तौर पर सुलझाए बिना उद्धार सम्भव नहीं । बोध की जागृति होती है, जिससे शोध होता है। माटी परिवर्तन की ओर मुड़ गयी और शिल्पी उसमें नूतन प्राण फूंकने लगा। वह अपने काम में तल्लीन है । उसे अपने तन का बोध नहीं । माटी खोदते एक काँटे पर शिल्पी की कुदाली की मार पड़ी। क्षत-विक्षत शरीर से वह जीता है। काँटे के मन में शिल्पी के प्रति बैर-भावना जागी है । तब माटी उसे समझाती है कि बदले का भाव कभी उचित नहीं। मानव-मन में आजकल बैर-भाव बढ़ गया है। सद्मार्गी लोग दुर्मार्गियों से बचने के वास्ते त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। आज भी हमारे बीच रावण जी रहे हैं। वासना से भरे मानव सुख-भोग के पीछे भाग रहे हैं । फूल और शूल के धर्म का वर्णन करते हुए कवि स्थापित करता है कि शूल से घृणा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि शूल कभी-कभी फूल जैसे कोमल होते हैं। शूल महादेव का आयुध है । लगता है, पश्चिमी सभ्यता ही फूल है। उन फूलों की वजह से लोग विरक्त हैं । शान्ति-सुख की प्रवेशिका भारतीय संस्कृति रूपी शूल खोजकर आत्म-शक्ति खोजने आज पश्चिमी लोग हमारे यहाँ प्रयाण कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति उन्नत है । हमारी आध्यात्मिकता का मार्ग कुछ कठिन है। कठिन तपस्या, साधना को ही शूल बताया गया है । शिल्पी, माटी को रौंदकर मृदु बनाने का प्रयास करता है । उसका एक पद मिट्टी रौंदकर घायल है तो दसरा पद प्रभु से प्रार्थना करता है कि दूसरों को पददलित न करें। यहाँ आधुनिक सन्दर्भ देखना असंगत न होगा । माटी को आम आदमी के रूप में देखें तो प्रकट होगा कि उसकी भी स्थिति माटी-जैसी होती है। जिस प्रकार माटी को रौंदते हैं, उसी प्रकार आम आदमी को उन्नत अधिकारी या कोई भी ऊँचा आदमी रौंदता है। उनसे आम-आदमी कुचला जाता है। दोनों में सिर्फ यही अन्तर है कि माटी को निर्माण के लिए रौंदता है और आम आदमी को नाश करने हेतु रौंदते हैं। अपने निर्माण के लिए उन्नत लोग निचले आम-आदमी को रौंदते हैं। "परस्पर कलह हुआ तुम लोगों में/बहुत हुआ, वह गलत हुआ। मिटाने-मिटने को क्यों तुले हो/इतने सयाने हो ! जुटे हो प्रलय कराने/विष से धुले हो तुम !" (पृ. १४९) इस घटना से बुरी तरह माँ घायल हो चुकी है : "जीवन को मत रण बनाओ/प्रकृति माँ का व्रण सुखाओ!" (पृ. १४९) इन पंक्तियों में वर्तमान स्थिति की ओर संकेत किया गया है। ये सब आज हमारे देश में विविध रूपों में प्रत्यक्ष हैं। ___ अंकों के माध्यम से कविता करके कवि ने कमाल किया है। काव्य में नूतनता लाए हैं । यह भी प्रतीक है । गुणन और जमाव से गणित में प्रवीणता स्थापित हुई है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy