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________________ 208 :: मूकमाटी-मीमांसा नास्ति येषां यश: काये जरामरणजं भयम् ॥"( भर्तृहरि, नीतिशतक, २३) विद्यासागरजी की इस कृति में वैचारिक मौलिकता, श्रेष्ठता, उदारता, प्रगतिशीलता आदि गुण समाविष्ट हैं जिनकी पुष्टि के लिए उन्होंने दृष्टान्तों का सहारा लिया है । सम्पूर्ण कृति में दृष्टान्तों का प्रयोग उन्होंने कतिपय इन कारणों से किया है : (१) उपपत्ति संग्रह भाव से, (२) अर्थ निष्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए, (३) दार्शनिक प्रतीकों को स्पष्ट करने के लिए, (४) बिम्बात्मक दृश्यों को उपस्थित करने के लिए, (५) जीवन के उपयोगी पक्षों को स्पष्ट करने के लिए, (६) चिन्तन की गुत्थियों को सुलझाने के लिए, (७) व्यष्टिगत या समष्टिगत भावबोध को सार्वभौमिक स्वरूप प्रदान करने के लिए, (८) जीवन मूल्यों को रूपायित करने के लिए, (९) काव्य में चारुत्व लाने के लिए, (१०) उदात्तता पैदा करने के लिए। लौकिक दृष्टान्तों में उपपत्ति संग्रह भाव से प्रयुक्त दृष्टान्त तर्कसंगत प्रमाण बनकर काव्य में उदाहरण का आकार पा गए हैं। इस तरह के दृष्टान्तों से कवि ने व्यावहारिक अनुभवों को आधार बनाकर, नया रूप गढ़ने का काम लिया है। 'मूकमाटी' के खण्ड एक 'संकर नहीं : वर्ण-लाभ' में जगह-जगह ऐसे दृष्टान्त मिलते हैं : "निरन्तर अभ्यास के बाद भी/स्खलन सम्भव है;/प्रतिदिन-बरसों से रोटी बनाता-खाता आया हो वह/तथापि/पाक-शास्त्री की पहली रोटी करड़ी क्यों बनती, बेटा !/इसीलिए सुनो !/आयास से डरना नहीं आलस्य करना नहीं !" (पृ. ११) यहाँ कवि ने 'अनभ्यासे विषं शास्त्रम्' की उक्ति को आधार बनाकर लोक-जीवन के महत्त्वपूर्ण पक्ष को उजागर कर दिया है। कवि यदा-कदा लोक-दृष्टान्तों के द्वारा तर्कसंगत तथ्यों को प्रस्तुत करने के लिए उपदेश शैली' का प्रयोग किया है । ऐसे स्थलों पर प्रयुक्त दृष्टान्त देखने में तो किसी उपमान सदृश दिखते हैं लेकिन काम सम्पूर्ण पद्य खण्ड के नियन्त्रक (कमाण्डर) की तरह करते हैं। इसी खण्ड का दूसरा उदाहरण हमारे कथन को प्रमाणित कर देगा : "प्राथमिक दशा में/साधना के क्षेत्र में/स्खलन की सम्भावना पूरी बनी रहती है, बेटा!/स्वस्थ-प्रौढ पुरुष भी क्यों न हो काई-लगे पाषाण पर/फिसलता ही है !" (पृ. ११) अर्थ व्यापकता की दृष्टि से प्रयुक्त दृष्टान्तों का स्वरूप अपेक्षाकृत गम्भीर चिन्तन का परिचायक बन गया है। फलत: कहीं-कहीं तो वह सामान्य ज्ञान को भी चुनौती देने की सामर्थ्य प्रकट करता है । साधारण पाठक जब तक सघन अनुभूति तक नहीं पहुँच सकेगा तब तक कवि के लक्ष्य को नहीं पा सकेगा। "यद्यपि इनका नाम पयोधर भी है/तथापि/विष ही वर्षाते हैं वर्षा ऋतु में ये । अन्यथा,/भ्रमर-सम काले क्यों हैं ?/यह बात निराली है कि वसुधा का समागम होते ही/'विष' सुधा बन जाता है।” (पृ. २३०) बादलों को पयोधर' कहा जाता है, क्योंकि ये जीवनदायीजल देकर वनस्पतियों, प्राणियों को जीवित रखते हैं। 'विष' का कोशगत एक अर्थ है 'जल' । कवि केशवदास ने भी 'रामचन्द्रिका' महाकाव्य में लिखा है-'विषमय यह गोदावरी' । जल बरसाने की जगह पर विष बरसाने का भाव लाकर कवि ने उसके लोक-अर्थ को छिपा दिया, जिससे
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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