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________________ 'मूकमाटी' का रचना-सौष्ठव एवं उसमें प्रतिपादित लोकदर्शन-दृष्टान्तबोध डॉ. यज्ञ प्रसाद तिवारी किसी महत् उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लिखा गया काव्य भले ही शास्त्रीय लक्षणों की कसौटी पर खरा न उतरे लेकिन वह महाकाव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है । वास्तविकता तो यह है कि कोई भी रचनाकार काव्य के लक्षणों को आधार मानकर किसी ग्रन्थ का प्रणयन करता ही नहीं है। फिर उसके काव्य को किसी शैली के चौखटे से नापना कहाँ तक न्यायसंगत है, यह सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है । रामायण, महाभारत,ईलियड, ओडिसी को प्रथम महाकाव्य का दर्जा दिया गया तथापि महाकाव्य के जिस स्वरूप का विकास अद्यतन मिलता रहा है उस स्वरूप की दृष्टि से उन्हें महाकाव्य कहना बहुत सार्थक नहीं दिखता है। कविता लिखने की मौलिक चेतना काव्य को दिशा और गति देती है। यह मौलिक चेतना युग विशेष की ध्वनि होती है, जिसे आकार देकर रचनाकार उस युग को मुखर करता है । वाचस्पति गैरोला के इस कथन से हम सहमत हैं कि 'रामायण' और 'महाभारत' को भी प्रथम महाकाव्य न कहकर युग विशेष के प्रतिनिधि महाकाव्य मानना ज़्यादा उचित है। यदि महाकाव्यों की परम्परा और शैली का अध्ययन करें तो यह मान लेना सहज और सार्थक प्रतीत होने लगता है कि कसौटियों के अनेक स्वरूपों के विकसित होने के बावजूद काव्य के अन्तर्गत सन्निहित जीवन्त-मूल्यों ने ही कृति को महाकाव्य का दर्जा दिया या दिलाया है । हिन्दी में 'पृथ्वीराज रासो', 'रामचरितमानस', 'कामायनी', 'साकेत' आदि आख्यानक काव्यों को महाकाव्य के एक निर्धारित मानक से मूल्यांकित करना यदि सम्भव नहीं है तब फिर 'मूकमाटी' को कैसे किसी निर्धारित मानदण्ड पर मूल्यांकित किया जा सकता है। काव्य-लेखन की अवधारणा काव्य-मूल्यांकन की अपेक्षा अधिक बलवती होती है । इस दृष्टि से किसी मूल्यांकन परिधि का निर्माण करना औचित्यपरक नहीं दिखता है और यही वह कारण है जिसके आधार पर 'मूकमाटी' जैसे महाकाव्यों को स्वतन्त्र निकषों पर कसने की ज़रूरत महसूस होने लगती है। 'मूकमाटी' काव्य इस शताब्दी के विख्यात सन्त दार्शनिक आचार्य विद्यासागर की अमूल्य काव्यकृति है। सर्जना के समस्त सोपानों के निर्माण में चिन्तन का अद्भुत सहयोग लिया गया है । इसीलिए यह महाकाव्य भावना के साथ-साथ विचारों को भी आन्दोलित करने में समर्थ हो गया है। कवि की अन्तश्चेतना जब आध्यात्मिक उत्कर्ष को कृति का लक्ष्य बना लेती है तब रचना का कथ्य चाहे जो भी हो, उससे महत् और सत् काव्य जन्म लेता ही है। 'मूकमाटी' की दार्शनिक अभिव्यक्ति, भावात्मक अन्विति, विचारात्मक कल्पना जिन निष्कर्षों को जन्म देती है, वे निष्कर्ष परम्परा उद्भूत नवनीत सदृश हैं। मेक्डॉनल ने यद्यपि 'रामायण' तक को अनुकृत महाकाव्य (आर्टिफिसियल एपिक) की संज्ञा दे डाली है तथा परवर्ती महाकाव्यों को अलंकृत महाकाव्य (एपिक ऑफ आर्ट) कह दिया है, लेकिन इससे यह नहीं सिद्ध होता है कि इस तरह के महाकाव्यों का कोई उद्देश्य नहीं था। 'मूकमाटी' को अलंकृत महाकाव्य की श्रेणी में रखना भी सम्भव नहीं है और न ही अनुकृत महाकाव्य की श्रेणी में रखना । फिर भी यह महाकाव्य है, इसमें भी सन्देह नहीं है। __वस्तुत: कोई भी कालबोधक कृति जब जीवन और कल्पना को प्रचलित बिम्बों और प्रतीकों के माध्यम से किसी सहज जन भाषा में आकार दे लेती है तब वह लोकभावना की प्रतिनिधि बन जाती है । जनता जनार्दन की वाणी के रूप में प्रकट किसी सन्त की विराट् भावना लोकमंगल का दर्शन करने में समर्थ होने पर ही काव्य या महाकाव्य का सृजन करती है। ऐसे काव्य में कवि का निजीपन इतना समष्टिगत हो जाता है कि रचना मात्र उसकी सर्जना न रहकर किसी लोकवाणी का सत्य बन जाती है, जो महाकाव्य का अर्थ ग्रहण कर लेती है । इस दृष्टि से भी 'मूकमाटी' को
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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