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मूकमाटी-मीमांसा :: 199
महाकाव्य के प्रणेता पूज्य आचार्यप्रवर ने 'मूकमाटी' यह नामकरण व्यापक दृष्टि से किया है, जिससे लोक के अनुकूल पर्यावरण में भी यह जीवन-घटना घटित होती है । उदाहरणार्थ--मूक वसुन्धरा ने मात्र मृत्तिका को ही जन्म नहीं दिया, अपितु सामान्य पृथिवी, बालू, ताम्र, लोहा, रांगा, सीसा, चाँदी, स्वर्ण, हरताल, मैनशिल, हिंगुल, सस्यक, सुरमा, अभ्रक, अभ्रबालुका, लवण आदि सोलह धातुओं को भी जन्म दिया, जो प्रकृति से कोमल होती हैं। ये सभी मूक होकर आभूषण आदि के रमणीय रूप को धारण करते हुए लोक सम्मान प्राप्त करती हैं, लोक उपकार करती
___ इन सोलह धातुओं से अतिरिक्त इस वसुन्धरा ने बीस कठोर धातुओं को भी जन्म दिया है । इन मूक धातुओं ने अशुद्ध खानि में पड़े हुए जीवन को संस्कार विशेष से शुद्ध करते हुए रमणीय आभूषण आदि अवस्थाओं को प्राप्त किया है और लौकिक उपकार किया है । वे मूक धातुएँ इस प्रकार हैं--(१) कठिन बालू, (२) पाषाण की चट्टान, (३) वज्र(हीरा), (४) दीर्घ शिला, (५) प्रवाल (मूंगा),(६) गोमेद मणि (पुलक मणि), (७) रुजक मणि, (८) स्फटिक मणि, (९) पद्मराग मणि, (१०) वैडूर्य मणि, (११) चन्द्रप्रभ मणि, (१२) चन्दन मणि, (१३) जलकान्त मणि, (१४) पुखराज मणि, (१५) सूर्यकान्त मणि, (१६) मरकत मणि, (१७) नील मणि, (१८) विद्रुम मणि, (१९) रुचिर मणि और (२०) अंक मणि । इन कठोर मूक धातुओं ने जिनालय, जिन प्रतिमा, विमान, अष्ट प्रातिहार्यों की पर्यायों को धारण करने का भी सौभाग्य प्राप्त कर लोक का महान् उपकार किया है। जिन मानवों ने नव देवों की प्रतिष्ठा एवं उपासना करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं किया, उनका जीवन ऊपर कथित वसुन्धरा की धातुओं से भी गिरा हुआ है और वे पुरुषार्थ से हीन हैं।
यहाँ पर यह विचारणीय है कि 'मूकमाटी' महाकाव्य के प्रणेता ने इसका नाम 'मूकमाटी' क्यों रखा ? विचार करने पर ज्ञात होता है कि 'माटी' गौरव हीन, तुच्छ एवं अकिंचन वस्तु है । माटी जैसी तुच्छ वस्तु भी श्रेष्ठ निमित्त प्राप्त कर स्वर्ण, मोती, मणि आदि धातुओं से अपना विकास और भी अधिक कर सकती है । जैसा विकास उच्च कीमती वस्तु का हो सकता है, वैसा विकास तुच्छ, अकिंचन वस्तु का भी हो सकता है। इस विषय को सिद्ध करने के लिए इस महाकाव्य का नाम 'मूकमाटी' निश्चित किया गया है, मूक मोती, मूक सुवर्ण, मूक प्रवाल, मूक रजत आदि नहीं रखा गया। यदि मूक मोती, मूक स्वर्ण आदि कीमती नाम रखा जाता, तो सभी मानवों की यह मान्यता हो जाती कि अति मूल्यवान् वस्तु ही अपना उद्धार और परोपकार कर सकती है और माटी जैसी तुच्छ व गौरवहीन वस्तु लोक में अपना विकास नहीं कर सकती, वह बेकाम है।
. 'मूकमाटी' इस नामकरण से यह भी ध्वनित हो जाता है कि उच्च वर्णजात मानव के समान हीन वर्णजात मानव भी योग्य निमित्त का सन्निधान होने पर अपना पूर्ण विकास एवं उद्धार कर सकता है । उन्नति का द्वार मानव मात्र के लिए खुला है। पाताल से निकल कर जल ने अपना जीवन शुद्ध किया तथा मेघमाला बन कर विश्व के लिए जल प्रदान किया, जिससे विश्व का संरक्षण एवं संवर्द्धन हुआ। जल का सौभाग्य है कि उसने जिन चैत्य और चैत्यालयों का अभिषेक किया । जल के द्वारा शान्ति धारा की क्रिया होती है । पूजन में प्रथम जल द्रव्य के समर्पण द्वारा द्रव्यों के अष्टक की शुद्धि सम्पन्न हुई। जल से शाकाहारी वस्तुओं का उत्पादन, तृषा-बाधा की शान्ति और लौकिक पदार्थों की शुद्धि प्रक्रिया और कृषि कार्य सम्पन्न हुआ। मूक जल ने मानव को प्रेरणा प्रदान की है कि हमारे समान आप भी विषय-कषायों को दूर कर आत्मशुद्धि का पुरुषार्थ करें।
'मूकमाटी' का उपलक्षण एक अग्नि द्रव्य भी है जो लोक में अपनी सत्ता रखता है, जिसने विश्व-शान्ति महायज्ञ का श्रेष्ठ कार्य सम्पादन किया। जिन-पूजा में धूप की सुगन्धि को दिव्य व्यापी किया। भोजन-निर्माण में पाकक्रिया का सम्पादन किया। अन्धकार के स्थान पर प्रकाश का विस्तार किया तथा स्वर्ण-रजत आदि धातुओं का संशोधन किया। विद्युत का रूप धारण कर अग्नि के रूप में चमत्कार पूर्ण कार्य किया, जो विज्ञान का एक साधन है।