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'मूकमाटी' : एक नया प्रस्थान-बिन्दु
डॉ. जयकुमार जलज कथावस्तु के कारण लम्बी काव्य यात्रा सरल हो जाती है । जहाँ कविता कमज़ोर पड़ती है, वहाँ कहानी उसे सहारा दे देती है । इसीलिए महाकाव्य/खण्डकाव्य के साथ कहानी को एक अनिवार्य तत्त्व के रूप में जोड़ा गया है । हिन्दी तथा हिन्दी की पूर्वज भाषाओं में अधिसंख्य लम्बी कविताएँ भी वे ही हैं, जिनके साथ कहानी जुड़ी हुई है। अच्छी कहानी या चरित, जैसा कि मैथिलीशरण गुप्त कहते हैं, अपने आप में काव्य होता है और उसके सहारे कोई भी कवि बन सकता है।
कठिनाई वहाँ पैदा होती है जहाँ कविता को कहानी के बिना लम्बी यात्रा करनी होती है । 'कामायनी' में जयशंकर प्रसाद ने कहानी के पर काफी हद तक कतरकर यह यात्रा की है। 'मूकमाटी' में यह यात्रा और भी साहसिक है, क्योंकि इसमें कहानी बहुत कुछ अनुपस्थित है । इसलिए आचार्य विद्यासागर का यह काव्य लम्बी कविताओं/ महाकाव्यों के क्षेत्र में एक नया प्रस्थान-बिन्दु है।
आचार्यश्री का विचरण मनुष्य ही नहीं जीव मात्र को मुक्ति का मार्ग दिखाने और तलाशने के लिए है। इसलिए आत्मसाधना के बावजूद समाज और परिवेश से उनका सरोकार वास्तविक और आन्तरिक है । फलस्वरूप 'मूकमाटी' की भाषा किताब की कम, जीवन की भाषा अधिक है। उसमें ऐसे स्थल बहुत कम हैं, जहाँ वह भाव या विचार सम्पदा को प्रकाशित करने के स्थान पर अपने खुद के ही चमत्कार में उलझी हुई हो । रचनाकार की पूर्व रचनाओं की तुलना में 'मूकमाटी' की भाषा अधिक विकसित और जीवन तथा समाज से अधिक जुड़ी हुई है । एक ओर जहाँ वह उनकी शब्दमूल तथा उसकी व्युत्पत्ति की पकड़ को सूचित करती है, वहीं दूसरी ओर शब्द के प्रयोग और प्रचलन से उनके जीवन्त परिचय को भी स्पष्ट करती है। वह अधिक धारदार, स्पष्ट और सक्षम है । कवि की भाषा के इस विकास क्रम को देखते हुए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि उनकी भविष्य की कृतियाँ उन्हें जनभाषा के अधिक निकट ले जाएंगी।
'मूकमाटी' हिन्दी कविता की एक असाधारण उपलब्धि है । लेकिन इससे बढ़कर वह उन उपलब्धियों की प्रस्तावना है, जो कवि आचार्य विद्यासागरजी की पावन लेखनी से होने को है। आचार्यश्री की आत्मसाधना, तपश्चर्या, जीवों को बन्ध से मुक्त देखने की उत्कट ललक और जीव मात्र के लिए निमित्त के रूप में उनकी सार्थक उपस्थिति जैसेजैसे बढ़ती जाएगी तैसे-तैसे उनकी कविता भी ऊँचे शिखरों पर पहुँचती जाएगी।
घाटियों की परिपाटी प्रतीक्षित है अभी।
पृ. २६ जिसका मालवरजालन है वृद्धहै, विशाल है, भावना भण्डार?