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________________ 168 :: मूकमाटी-मीमांसा “आज दान का दिन है/आदान-प्रदान लेन-देन का नहीं, समस्त दुर्दिनों का निवारक है यह/प्रशस्त दिनों का प्रवेश-द्वार !" (पृ.३०७) सन्तों की महान् प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है, यथा-गर्तपूर्ण वृत्ति, गोचरी वृत्ति, अग्निशामक वृत्ति, भ्रामरी वृत्ति । इस प्रकार कुम्भ को आधार मान कर सन्तों की अनेक वृत्तियों पर प्रकाश डाला गया है। नियति और यति की परिभाषाएँ भी प्रस्तुत की गई हैं : " 'नि' यानी निज में ही/'यति' यानी यतन-स्थिरता है अपने में लीन होना ही नियति है/निश्चय से यही यति है।" (पृ. ३४९) स्वर्ण-कलश आदि का तृणीकरण और कुम्भ का समादर किया जाता है । सेठ को समाप्त करने के लिए आतंकवादी दल के आने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। गजदल और नागदल आतंकवादी दल को समाप्त करने के लिए उद्यत होते हैं किन्तु उनसे कहा जाता है कि कहीं भी प्राणदण्ड नहीं देना, क्योंकि : "क्रूर अपराधी को/क्रूरता से दण्डित करना भी एक अपराध है,/न्याय-मार्ग से स्खलित होना है।" (पृ. ४३१) कुम्भ का सहारा पाकर सेठ अन्त में नदी के किनारे पर पहुँच जाता है । सपरिवार सेठ जल-प्लावन से बच जाता है और कुम्भ का सहारा पाकर सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाता है। 0 "डूबती हुई नाव से/दल कूद पड़ा धार में माँ के अंक में नि:शंक होकर/शिशु की भाँति !" (पृ. ४७७) 0 "बन्धन रूप तन,/मन और वचन का आमूल मिट जाना ही/मोक्ष है ।" (पृ. ४८६) 'मूकमाटी' आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र है और इसका लक्ष्य भोग से योग की ओर मोड़ देकर वीतराग श्रमण-संस्कृति को जीवित रखना है । मानवता और दार्शनिकता के समानान्तर में मानव-मूल्यों को परखने का यह महाकाव्य है। कुम्भ (आरम्भिक दशा) विकारों से आक्रान्त मानव का प्रतीक है, मंगल कलश (कुम्भ की पूर्ण विकसित दशा) आध्यामित्कता से विभूषित मानव का प्रतीक है। स्वर्ण-कलश मानव की स्वर्ण पिपासा का प्रतीक है। नदी भव का प्रतीक है। मानव आरम्भिक दशा में मिट्टी के समान गुणरहित होता है। कुम्भकार अर्थात् गुरु का उपदेश पाने के बाद वह आध्यात्मिकता से विभूषित मानव हो जाता है । हाँ ! इतना कह सकते हैं कि जैन-आस्तिक-दर्शन से प्रभावित हो जाता है। धन-दाह से पीडित सेठ अर्थात पँजीपति या दौलतमन्द नदी में अर्थात धन-दाह-रूपी प्रवाह में बह जाता है। ईश्वर वही है जो श्रद्धेय है, न कि सृष्टिकर्ता । ऐसी मान्यता को श्रमण-आस्तिक-दर्शन या जैन-आस्तिक-दर्शन कहते हैं । इसका समुचित प्रतिवेदन करना ही मूकमाटी' का 'प्रवचन' है, न कि 'वचन'। पृ.४ उत्पान्व्यम प्रौव्ययुक्तसत्सन्तों सेयसानिमारैइसमें अनन्तकी अस्तिमा सिमासी गई है।
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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