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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 167 “परिश्रम के बिना तुम/नवनीत का गोला निगलो भले ही, कभी पचेगा नहीं वह/प्रत्युत, जीवन को खतरा है !" (पृ. २१२) राजा मूर्छित हो जाता है। बाद में मन्त्र-जल से वह सचेत हो जाता है । सब कहते हैं : “सत्य-धर्म की जय हो !/सत्य-धर्म की जय हो!" (पृ. २१६) ___ राजा आतंकवादी है। इतना होने पर भी समंदर अपने कलुषित मन को शमित नहीं कर सका । घनघोर वर्षा करने के लिए वह बादलों को प्रेरित करता है । वह भी विफल हो जाता है : - "दृढमना श्रमण-सम सक्षम/कार्य करने कटिबद्ध हो।" (पृ. २४३) 0 "ऊपर यन्त्र है, घुमड़ रहा है/नीचे मन्त्र है, गुनगुना रहा है एक मारक है/एक तारक ।” (पृ. २४९) इस खण्ड का अमूल्य सन्देश सुनिए । दिशाबोध कितना महत्त्वपूर्ण है, देखिए : . "धरती की प्रतिष्ठा बनी रहे, और/हम सब की धरती में निष्ठा घनी रहे, बस!" (पृ. २६२) लो 'यात्रा की शुरूआत अभी नहीं हुई है' (पृ. २६७) करनी है। कच्चा घड़ा तैयार हो जाता है । कुम्भकार उसे अवा में डाल कर जलाता है। उसके ऊपर ढकी हुई राख हटा देता है तो कलश दिखाई देता है । जलते-जलते बबूल की लकड़ियाँ अपनी पीड़ा व्यक्त करती हैं : "निर्बल-जनों को सताने से नहीं,/बल-संबल दे बचाने से ही बलवानों का बल सार्थक होता है ।"(पृ. २७२) अग्नि कहती है : "मैं इस बात को मानती हूँ कि/अग्नि-परीक्षा के बिना आज तक किसी को भी मुक्ति मिली नहीं,/न ही भविष्य में मिलेगी।" (पृ. २७५) ... कई-कई सन्दर्भो में प्रासंगिकता के अनुसार दर्शन और आध्यात्मिकता के अन्तर पर प्रकाश डाला गया और बताया गया है कि दुनिया में दो प्रकार के लोग होते हैं- भोगी और विरागी : "इस युग के/दो मानव/अपने आप को/खोना चाहते हैंएक/भोग-राग को/मद्य-पान को/चुनता है;/और एक योग-त्याग को/आत्म-ध्यान को/धुनता है।" (पृ. २८६) कुम्भकार के द्वारा कुम्भ को बाहर निकालने के कुछ दिनों के बाद एक सेठ उसे ले आने के लिए अपने नौकर को कुम्भकार के पास भेजता है। वह अत्यन्त प्रसन्नता के साथ उसे सेठ को देने के लिए तैयार हो गया। नौकर उस कुम्भ को खरीदने के समय उसको बजा-बजा कर देखने लगा। उसमें से सात स्वर सुनाई दिए । उन्होंने नीराग नियति का उद्घाटन किया । उन सारे स्वरों का अर्थ बस इतना ही है। कुम्भ का मूल्य चुकाने के लिए सेवक पैसे देना चाहता है तो कुम्भकार कहता है :
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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