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न एक-एक
160 :: मूकमाटी-मीमांसा
अध्यात्म और आत्मिकी किंवा भौतिकवादी विचारणा से ऊपर उठकर एक विशुद्ध काव्य ग्रन्थ के रूप में विचार करने पर 'मूकमाटी' में अपूर्व काव्यगत विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं। काव्य में एक स्थूल कथानक के जरिए कवि ने अपने समूचे युग और युगीन जीवन के व्यापक पक्षों पर विचार कर डाला है। विचार करने की कवि की अपनी विलक्षण शैली है। इसके लिए कवि ने या तो व्युत्पत्ति शास्त्र का गहन अध्ययन किया है अथवा एकाक्षर कोश' का सहारा लिया है। कुछ उदाहरण देखिए :
0 "स्व की याद ही/स्व-दया है/विलोम-रूप से भी __ यही अर्थ निकलता है/याद "द "या"।" (पृ. ३८) . “ 'स्व' यानी अपना/'' यानी पालन-संरक्षण/और 'न' यानी नहीं,
जो निज-भाव का रक्षण नहीं कर सकता
वह औरों को क्या सहयोग देगा ?" (पृ. २९५) 0 "गद का अर्थ है रोग/हा का अर्थ है हारक/मैं सबके रोगों का हन्ता बनूं
"बस,/और कुछ वांछा नहीं/गद-हा "गदहा!" (पृ. ४०) एक काव्य के रूप में 'मूकमाटी' की महानता निःसन्देह है। इसमें न केवल अलंकारों को नया रूप-रस-गन्ध दिया गया है, वहीं इस महाकाव्य का एक-एक शब्द अन्त:की सदभावना से शद्ध-पत होकर निकला है। इन एक शब्दों के साथ परिव्राजक मुनि कवि के न जाने कितने जीवनानुभव ओत-प्रोत हैं, न जाने कितनी करुणा की धाराएँ इस करुणावतार की वाणी में समाहित हुई हैं-इसकी गिनती वही कर सकता है जो सत्य-अहिंसा-प्रेम के पथ पर नंगे पाँव चला हो एवं अनासक्त योगी-सा जीवन जिया हो । सन्त कवि ने साहित्यकार होने का अधिकार भी उसी को दिया है, जो 'शाश्वत साहित्य' को 'सार्थक जीवन का स्रष्टा' मानकर 'शान्ति का श्वास लेता' है । सन्त कवि ने साहित्य को परिभाषित ही नहीं किया है, उसे दो भागों में विभक्त भी किया है- १. शाश्वत २. सम-सामयिक । साहित्य के बारे में कवि का कहना है :
"शिल्पी के शिल्पक-साँचे में/साहित्य शब्द ढलता-सा ! हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है/और सहित का भाव हो/साहित्य बाना है,/अर्थ यह हुआ कि जिस के अवलोकन से/सुख का समुद्भव - सम्पादन हो
सही साहित्य वही है।” (पृ. ११०-१११) सन्त कवि की साहित्य विषयक मान्यता में ध्यान देने की बात यह है कि उसने साहित्य को सुख का साधक माना है, आनन्द का नहीं । जबकि जीवन्त साहित्य को पढ़ने वाला 'फटा माथा' वाला 'काँटा' आनन्द का अनुभव करता है :
"कान्ता-समागम से भी/कई गुना अधिक
आनन्द अनुभव करता है/फटा माथ होकर भी।” (पृ. १११) 'प्रासंगिक साहित्य विषय पर' कवि के विचार उन्हीं के शब्दों में अवलोकनीय हैं :