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________________ 'मूकमाटी': आधुनिक हिन्दी साहित्य का 'वि'लक्षण महाकाव्य ___डॉ. विजय द्विवेदी दिगम्बर जैन मुनि आचार्य विद्यासागर विरचित 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी साहित्य का एक 'वि'लक्षण महाकाव्य है । विलक्षण से मेरा मतलब यहाँ 'विशिष्ट लक्षण' और 'बिना लक्षण'- दोनों से है । इस महाकाव्य में 'भारतीय काव्य शास्त्र' में परिगणित 'महाकाव्य' के सभी लक्षण यथावत् नहीं पाए जाते हैं। तथापि यह भी नहीं कहते बनता है कि इसमें वे हैं ही नहीं। भारतीय आचार्यों में महाकाव्य की परिभाषा निश्चित करने वाले प्राचीनतम आचार्य भामह ने 'सर्गबद्धो महाकाव्यं महतां च महच्च यत्' के आधार पर महाकाव्य के जिन तत्त्वों की पहचान कायम की है, वे ये हैं- (१) सर्ग बद्धता, (२) आकार का बड़ा होना, (३) प्रस्तुति-विधान की उत्कृष्टता, (४) महान् चरित्र और विजयी नायक का समावेश, (५) जीवन के विविध रूपों, अवस्थाओं, घटनाओं आदि का चित्रण, (६) नाटक की सन्धियाँ, अवस्थाएँ आदि का होना, (७) कथानक और प्रभाव की अन्विति एवं (८) ऋद्धि मत्ता। परवर्ती आचार्यों जैसे दण्डी,रुद्रट, हेमचन्द्र, कविराज विश्वनाथ आदि ने अपने से पूर्ववर्ती सभी के मतों का समाहार करके महाकाव्य के लिए निम्नोक्त तत्त्वों का निरूपण किया है- कथानक, चरित्र, वस्तु-व्यापार और परिस्थिति, रस और भाव-व्यंजना, अलौकिक एवं अति प्राकृतिक तत्त्व, भाषा, शैली और उद्देश्य । भारतीय आचार्यों के द्वारा महाकाव्य की की गई उक्त विवेचना के बाद महाकाव्य के सम्बन्ध में पाश्चात्य विचारकों की मान्यताओं पर भी एक नज़र डाल लेना अनुचित न होगा। 'दि बुक ऑफ एपिक' के लेखक ने ठीक ही लिखा है : “संसार में जितने राष्ट्र और कवि हैं, महाकाव्य की उतनी ही परिभाषाएँ हैं और महाकाव्य-रचना के उतने ही नियम हैं।" तब भी समन्वयात्मक दृष्टि से पाश्चात्य समीक्षा के क्षेत्र में महाकाव्य हेतु निम्न तत्त्वों का पाया जाना आवश्यक माना गया है : १. महत् उद्देश्य, महत् प्रेरणा और महान् काव्य प्रतिभा। २. गुरुत्व और गाम्भीर्य। ३. युगीन जीवन और संस्कृति का महत् कार्यों के परिप्रेक्ष्य में चित्रण । ४. ससंगठित और जीवन्त कथानक । ५. गौरवमयी उदात्त शैली, प्रभावान्वित रस-योजना और गतिशील जीवन-शक्ति तथा प्राणवत्ता। महाकाव्य के सम्बन्ध में भारतीय एवं पाश्चात्य विचारकों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय आचार्यों ने महाकाव्य के बाहरी स्वरूप और शैली पर विशेष ध्यान दिया है, जबकि पश्चिमी विचारकों ने अन्तर्मुखी दृष्टि अपनाई है और कथानक, नायक, रसादि पर विशेष ध्यान नहीं दिया है। 'मूकमाटी' महाकाव्य है, इसमें कोई सन्देह नहीं है । अत: इसके मूल्यांकन में दोनों का (भारतीय और पाश्चात्य) का समन्वय आवश्यक माना गया है । एक दूसरी बात यह भी है कि यह महाकाव्य परम्परित न होकर नित्य नूतनता लिए हुए तथा अनेक दृष्टियों से विलक्षण-विचक्षण एवं अपने परिवेश से शक्ति, जीवन से अनुभव, युग से जीवन्तता तथा अध्यात्म से आधार-भूमि ग्रहण किए हुए है। इसमें सर्वतोभावेन महत्' तत्त्व की प्रतिष्ठा हुई है। इसमें भाषा-शैली, भाव, उद्देश्य, चित्रण एवं विवरण-सभी कुछ भव्य, उदात्त एवं गौरव गरिमा से मण्डित है । अतः 'मूकमाटी' के महाकाव्यत्व पर विस्तार से विचार करने से पहले इसके काव्यत्व का विवेचन करना अनुचित न होगा। 'मूकमाटी' महाकाव्य आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय काव्य कृति है । वेदों में कवि को 'परमेश्वर' और दृश्यमान् जगत् को 'काव्य' कहा गया है। कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूः' (ईशावास्योपनिषद् /८)
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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