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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 149 इससे यही फलित हुआ,/अलं विस्तरेण !" (पृ. ४९) यहाँ सब रूप में 'अलं विस्तरेण' कार्य प्रवृत्त है। व्यक्ति या जीव के दृष्टि विकास और व्यक्तित्व विस्तार के लिए एक मार्गदर्शन है। __कवि इस बीच समाज की रीति, नीतियों को कई बार स्पर्श करते हैं। समाज में लोग परस्पर गिराते और पददलित करते हैं। इसके साथ व्यक्ति स्वयं हीनभावना के कारण तड़पता है । माटी के माध्यम से कवि कहते हैं : "स्वयं पतिता हूँ/और पातिता हूँ औरों से, ''अधम पापियों से/पद-दलिता हूँ माँ ! सुख-मुक्ता हूँ/दुःख-युक्ता हूँ तिरस्कृत त्यक्ता हूँ माँ !/इसकी पीड़ा अव्यक्ता है।” (पृ. ४) कवि समाज के इस स्तर भेद को दूर करने के प्रति चिन्तित हैं । माटी पूछती है : "इस पर्याय की/इति कब होगी ?/इस काया की/च्युति कब होगी ? बता दो, माँ इसे !/इसका जीवन यह/उन्नत होगा, या नहीं ?" (पृ. ५) इस प्रश्न पर साधक का विश्वास अटल है । सत्ता की शाश्वतता पर उसकी पूरी श्रद्धा है । धरा कहती है'सत्ता शाश्वत होती है, उसकी गन्ध का अनुपान करना होगा । वही जलधारा जो उजली-उजली बादलों से झरती है, धरा-धूल में आ धूमिल हो, दल-दल में बदल जाती है। इसीलिए कवि संगति के महत्त्व पर जोर देते हैं। वही जलधारा जो नीम की जड़ों में जाकर कटुता में ढलती है, सागर में जाकर लवणाकर कहलाती है, विषधर के मुँह में जाकर हाला में ढलती है और सागरीय शुक्तिका में गिरी, यदि स्वाति का काल हो, मुक्तिका बन कर झिलमिलाती है।' संगति और काल या क्षण दोनों के महत्त्व को कवि स्वीकार करते हैं। इसी प्रकार वे कहते हैं : "जैसी संगति मिलती है/वैसी मति होती है मति जैसी, अग्रिम गति/मिलती जाती "मिलती जाती.. और यही हुआ है/युगों-युगों से/भवों-भवों से !" (पृ. ८) युग और भव का उच्चारण करते समय स्पष्ट ही कवि का साधना के सत् परिणामों के प्रति एक अदमनीय विश्वास झलकता है और उससे पाठक या जीव को एक सत् प्रेरणा प्राप्त होती है । कवि के शब्दों में ही उद्धरण देने पर : ".."जीवन का/आस्था से वास्ता होने पर/रास्ता स्वयं शास्ता होकर सम्बोधित करता साधक को/साथी बन साथ देता है ।" (पृ. ९) परिणाम यह होता है- "सार्थक जीवन में तब/स्वरातीत सरगम झरती है।" वास्तव में देखा जाए तो लघुतम नाम की कोई चीज़ नहीं होती। साधना का महत्त्व है और साधना में प्रभु को गुरुतम मानना ज़रूरी है। सत्य क्या है - "असत्य की सही पहचान है।" जड़ मजबूत हो तभी तो चूल पर फूल खिलेगा और यह सुदीर्घकालीन परिश्रम का फल होता है। 'मूकमाटी' की एक और विशेषता है कि उसमें न कोई कथा-प्रवाह है, न ही कथात्मक उदाहरण । भारतीय
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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