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मूकमाटी-मीमांसा :: 145 पर चढ़ने, अवा की आग में तपने आदि की तीव्र व्यथाओं में से होकर गुज़रना होता है। जब इन सारी प्रतिकूलताओं में भी मिट्टी अपने सहज समताभाव से च्युत नहीं होती, तब उसमें शीतल जलधारण की योग्यता प्रकट होती है और उसका जीवन हो उठता है सफल/ सार्थक उस दिन, जिस दिन वह नगर सेठ के हाथों आहार चर्या के लिए पधारे मुनिराज के पाद- प्रक्षालन तथा तृषा-तृप्ति में निमित्त बनता है । इस प्रकार घट की विकास कथा के माध्यम से सन्त कवि ने भवसागर से पार होने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को ही शब्दायित किया है ।
'प्रस्तवन' में प्रस्तुत कृति को 'आधुनिक भारतीय साहित्य की एक उल्लेखनीय उपलब्धि' तथा 'आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र' निरूपित किया गया है। यह ठीक ही है। उपलब्धि तो इस अर्थ में कि अध्यात्म के ताने-बाने पर इतनी रम्य और रोचक रचना इसके पूर्व देखने में नहीं आई तथा शास्त्र इस अर्थ में कि इसमें जैन दर्शन के मूल तत्त्वों का रसात्मक चित्रण एवं निमित्त और उपादान, नियति और पुरुषार्थ, पाप और पुण्य, सृष्टि कर्तृत्व और कार्य-कारणव्यवस्था जैसी गुत्थियों का सहज समाधान प्रस्तुत हुआ है । कवि ने सर्वत्र पुरुषार्थ पर जोर दिया है तथा उसके अनुसार पुरुषार्थ का फल है ज्ञान-चेतना का निर्मल होना । ज्ञान की निर्मलता का स्वरूप इन पंक्तियों में कितने सहज रूप से व्यक्त हुआ है :
पूरी कृति में ऐसे सूत्र सर्वत्र बिखरे पड़े हैं।
शब्दालंकार और अर्थालंकारों की छटा तो यत्र-तत्र देखते ही बनती है । कवि का उक्ति - वैचित्र्य तो कमाल का है । शब्दों पर उसकी पकड़ कितनी गहरी है, इसका परिचय पाने के लिए मात्र दो-चार संक्षिप्ततम उद्धरण प्रस्तुत हैं :
कामना :
रसना :
आदमी
नारी :
गदहा :
"ज्ञान का पदार्थ की ओर / ढुलक जाना ही / परम आर्त पीड़ा है,
और/ ज्ञान में पदार्थों का / झलक आना ही / परमार्थ क्रीड़ा है ।" (पृ. १२४)
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"यही मेरी कामना है/कि / बस इस घट में / काम ना रहे !” (पृ. ७७) "मुख से बाहर निकली है रसना / थोड़ी-सी उलटी-पलटी,
कुछ कह रही - सी लगती है - / भौतिक जीवन में रस ना !" (पृ. १८०) "संयम के बिना आदमी नहीं / यानी / आदमी वही है
जो यथा - योग्य / सही आदमी है ।" (पृ. ६४)
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'... नारी / यानी - / 'न अरि' नारी..
अथवा / ये आरी नहीं हैं / सोनारी ।" (पृ. २०२)
"गद का अर्थ है रोग / हा का अर्थ है हारक/ मैं सबके रोगों का हन्ता बनूँ ... बस, / और कुछ वांछा नहीं / गद - हा गदहा !" (पृ. ४० )
'मूकमाटी' में ऐसे उदाहरण पड़े हैं। शब्दों की विलोम शक्ति का भी कवि विशेषज्ञ है । 'खरा' में से 'राख', 'राही' में से 'हीरा', 'याद' में से 'दया', 'लाभ' में से 'भला' आदि कुछ ऐसे ही नमूने हैं ।
आज की सामाजिक विषमता/विद्रूपता भी कवि की कलम से अछूती नहीं रह सकी है । उसका स्पष्ट उद्घोष
"जब तक जीवित है आतंकवाद / शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह ।” (पृ. ४४१ )