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126 :: मूकमाटी-मीमांसा
स्वाभाविक ही है/और/प्यार और पीड़ा के घावों में/अन्तर भी तो होता है,
रति और विरति के भाव/एक से होते हैं क्या ?" (पृ. ३२-३३) 'मूकमाटी'कार अपरिभाषितों को परिभाषित करने में किसी भी बड़े परिभाषाकार से अधिक सिद्ध है। उदाहरण के लिए लेखन कर्म के प्रसंग में उसके निम्न उद्धरण को लीजिए :
"कुशल लेखक को भी,/जो नई निबवाली/लेखनी ले लिखता है लेखन के आदि में खुरदरापन ही/अनुभूत होता है/परन्तु,/लिखते-लिखते निब की घिसाई होती जाती/लेखन में पूर्व की अपेक्षा/सफाई आती जाती फिर तो "लेखनी/विचारों की अनुचरा होती""/"होती विचारों की सहचरी होती है;/अन्त-अन्त में "तो/जल में तैरती-सी
संवेदन करती है लेखनी।” (पृ. २४) रचना में ध्रुव सत्यों की छटा देखने को मिलती है। कभी ये ध्रुव सत्य जीवन को परिभाषित करते हैं तो कभी सत्य को ही, कभी रास्ते के स्वरूप को रखते हैं तो कभी स्वयं की सत्ता को । रचनाकार इन धुव सत्यों को व्यक्त करने में इतना सिद्ध है कि जब वह उन्हें छन्द में व्यक्त करना चाहता है तो छन्द में व्यक्त करता है, जब सूक्त कथनों के माध्यम से रखना चाहता है तो सूक्त कथनों का सृजन करता है। सूक्त कथन :
० "बहना ही जीवन है।" (पृ. २)
"असत्य की सही पहचान ही/सत्य का अवधान है, बेटा!" (पृ. ९) छान्दिक संरचना में :
० "सत्ता शाश्वत होती है, बेटा !/प्रति-सत्ता में होती हैं
अनगिन सम्भावनायें/उत्थान-पतन को,/खसखस के दाने-सा
बहुत छोटा होता है/बड़ का बीज वह !" (पृ. ७) ० "...जीवन का/आस्था से वास्ता होने पर/रास्ता स्वयं शास्ता होकर
सम्बोधित करता साधक को/साथी बन साथ देता है।” (पृ. ९) पूरी की पूरी 'मूकमाटी' रचना प्रतीकात्मक है। भारतीय काव्यशास्त्रियों, चाहे ध्वनिवादी आचार्य आनन्दवर्धन रहे हों या मम्मट, ने व्यंजना प्रधान काव्य को उत्तम काव्य माना है । प्रतीक में भी सीधे अर्थ सामने नहीं आता, अर्थ व्यंजित होता है माध्यम के द्वारा बड़े स्पष्ट रूप में । रचना में प्रतीकात्मकता में माध्यमों की किन्हीं अंशों में व्याख्या की जा सकती है अर्थात् माध्यम व्याख्येय होते हैं । ऐसी प्रतीकात्मकता प्रतीकस्थों की प्रतीकात्मकता कहलाती है। 'मूकमाटी' में इस प्रकार की प्रतीकात्मकता की अधिकता है। दूसरी प्रतीकात्मकता वहाँ होती है जिसमें माध्यमों की व्याख्या नहीं की जा पाती, माध्यम व्याख्येय नहीं होने पर वे रचनाकार और पाठक दोनों के मस्तिष्क में बड़े साफ़ दिखते हैं, झलकते हैं । इस प्रकार के माध्यम प्रतीक माने जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि 'मूकमाटी'रचना सायास और जटिल है, सरल नहीं, पर सच पूछिए तो यह दोष किसी भी रचना पर लगाया जा सकता है, क्योंकि कोई भी रचना आद्योपान्त